मैं सिगरेट तो नहीं पीता खैर इत्तेफ़ाक़ से लाइटर रखता हूँ | वो एक लाइटर जो कोई मेरे टेबल पे छोड़ गया था ; सबो - रात साथ साथ चलता है | जाने अनजाने किसी चौराहे माचिस की कश्मकश में भटकते दो एक आवारे मिल जाते हैं, मैं लाइटर बढ़ा देता हूँ | बड़ा सुकून है इसमें किसी को बेपनाह जलते देखना और फिर चुप चाप निकल जाना , नए हमनवा की तलाश में || शायद लाइटर के साथ साथ कोई एक नैतिक जिम्मेदारी छोड़ गया है इसे जलाते रहने का इसे जंग से बचाने का | काफी कुछ पेट्रोलियम कैद है उन्मुक्ति की उम्मीद लिए ; क्या पता ऐसे ही मिट जाए धरा का अँधेरा इन नन्हीं नन्हीं चिंगड़ियों से ||
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |
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