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Showing posts from October, 2013

THE DEPARTURE SMOKE : TENDULKAR , SACHIN RAMESH .

Some one is departing , yes a bit rugged and little tattered and the smell of departing foot steps is being felt across the whole cricketing diaspora . Yes from the Sabina park , Kingston to the deep down    St John's Wood, London lord's ; from sharjah , the emirate of UAE to the spalding joy of the eden gardens , kolkata   , the meter of expected abominable lull in cricket can be felt and smelled  every where . ITS TENDULKAR .  Some people feel even a nuclear bomb can't break this rock solid defence  And when its TENDULKAR departure is just not about an old man who served this game for years and years . Rather the departure is more about a rock solid statement of game , about the principles of driving the ball  kissing the green covers , and the cut calculated that just traverse down the line perpendicularly bisecting the arc joining wicketkeeper and slip . The departure is more of an  anticipation never expressed before and after , of the pures

डर तो लगेगा ही ना |

डर तो लगेगा ही ना | वक़्त जो कल तक किसी का नहीं था  आज तुम्हारी नज़रों का कायल बन बैठा है | हवाओं के आवरे झोंके  कल तक तो किसी के इशारे पे रुख नहीं बदलते थे | आज क्या हो गया है  दे रहे हैं तुम्हारी जुल्फों को   जिंदगी ऐसे  जैसे मुझसे ज्यादा अधिकार उनका है तुम पर || और ये पर्पल नेल पेंट  मुझे तो अंदाजा भी नहीं कितने ख़ास होंगे ये ; डर तो लगेगा ही ना |

दिन इतना जल्दी क्यूँ ढलता है

दिन इतना जल्दी क्यूँ ढलता है   जो ढलता है  तो जेहन में इतना मचलता क्यूँ है ? जो ढलता है  तो एक एहसास लेकर क्यूँ ढलता है  आँखों में एक  मंजर  क्यूँ  छोड़ जाता है ? और फिर शाम को  मैं कागजों के लेकर बैठता हूँ | ख्याल आता है : दर्द को उकेरना कितना आसान है  मुहब्बत के लिए तो लफ्ज़ ही नहीं मिलते  और जो मिलते हैं तो वर्का कम पड़ जाता है || ख्याल आता है : आसाम की चाय तो वही रहती , वही स्वाद ,वही अंदाज , वही कॉफ़ी डे की टेबलें  फिर शहर के साथ लम्हा क्यूँ बदल जाता है ? ख्याल आता है : वो कौन है जो फलक से उतर कर दिलों पे बैठ गया है  कल तक तो खिडकियों से दीखता था चाँद   आज लबों पे आ गया है  अनायास शर्मो हया का एक डोर टूट जाता है | ख्याल आता है : एक  नए शहर के साथ  एक नयी जिंदगी आती है | एक नया रुख एक नया लफ्ज़  एक नयी उन्मुक्ति आती है | अरसों बीते गीतों का एक  नया मायना आता है  और जो दिन ढल जाता है  हरेक लफ्ज़ हरेक लम्हा हरेक रात सताता है | ख्याल आता है : दिन इतना जल्दी क्यूँ ढलता है   जो ढलता है  तो जेहन में इतना मचलता क्यूँ है ? .............................

SANSKRIT

Sharing the youtube link of last evening ... ANUPAM KUMAR{sanskrit} मुझे बड़ा सटीक लगता है जब कोई कहता   है इकोनॉमिक्स की बात करनी हो तो अंग्रेजी में करो , पॉलिटिक्स की बात करनी हो तो हिंदी में करो , और मुहब्बत की बात करनी हो तो उर्दू में करो | ये बात तो मुझे तब समझ में आई जब मैंने मुरादाबादी का वो शेर पढ़ा :   हमारे प्यार की चिठी तुम्हारे बाप ने खोली / हमारा सर ना बच पाता , गर उसे उर्दू आ जाती | खैर आज मेरे चर्चा का विषय हिंदी , अंग्रजी ये उर्दू नहीं | आज मेरे चर्चा का विषय है संस्कृत | मैं मानता हूँ थोड़ी हैरानी   होती है की ये उर्दवी अंदाज , हिन्दवी लफ्ज़ और अंग्रेजी लिबास में खड़ा सख्स संस्कृत क्या समझाएगा ? परन्तु क्या करें मजबूरी है | मेरे कंप्यूटर साइंस के कुछ मित्र यहाँ बैठे हैं , वो शायद इस बात से वाकिफ होंगे की दुनियां में टॉकिंग कंप्यूटर बनाने की बात चली : प्रश्न उठा की कौन सी भाषा चुनी जाए | चुकी   कंप्यूटर