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Showing posts from December, 2013

जाते जाते एक कसक छूट ही जाता है।।

घर कैसा भी हो दीवारों के दो चार टुकड़े सलाखों के चंद पल्ले ही सही जाते जाते एक कसक छोड़ ही जाता है । दो मंजिले पे आजकल कितने कबूतर आते हैं; दरवाजे के आलाव में कितनी आग ठहरती है चाय और सियासत के चर्चे में जीत किसकी होती है वो कौन है जो हर रोज़ शैर के वक़्त रोकता है ; बड़े अदब से पूछता है "सर ये रास्ता कहाँ तक जाता है? घर आखिर घर है,जाते जाते याद आता है। घर आखिर घर है मेरी रुसवाईयों का तकिया है , मेरे इश्क का रस्म है मेरा एक हिस्सा है , मैं इसका एक हिस्सा हूँ। सामने तुलसी के साथ उगते गुलाब की फीकी पड़ती चमक दूर दूर तक फैली सरसों की मासूम सी महक आम के कंधे पर तख़्त के झूले कोई आँख मूंदे ,हम छुप जाएँ कोई दौड़े , हमें छू ले  । जाते जाते एक कसक छूट ही जाता है।।

वो भी एक दौड़ था ।

वो भी एक दौड़ था । नींद में सपने देखा करता था। खिड़कियों के ग्रिल से चाँद ढूंढ़ता था। तसब्बुर का एक जाल बिछाता था; आसमां के कबूतरों को जमीं पड़ बुलाता था। हकीकतों में मरता था; ख्यालों में जीता था। इश्क में शायरी हुआ करती थी ; डूबे डूबे से लफ़्ज़ों में वो कहती थी "मेरे ख्वाबों के हमसफ़र कभी तो आया करो मेरे शहर । तुमसे बातें करते करते मैंने सारे तारे गिन लिये हैं।" ................ वो भी एक दौड़ था नींद में सपने देखा करता था। आज हकीकत सपने जैसे हो गये हैं। नींद आती नहीं; सपनों का तो सवाल ही नहीं उठता ।

Rohan

इस कमरे की खिड़की से  अब वो चाँद नज़र नहीं आता है। टुकड़ों टुकड़ों में बंटे सन्नाटे हैं , जैसे परिंदों के पर बाँध दिए हैं वक़्त ने। एक छोटा सा रोहन था। सामने छत पे बैडमिंटन खेलता रहता था। कहता था " साईना से शादी करेगा या फिर उसकी बेटी से ।" ठीक आठ बजे सड़क पे खड़ा हो जाता था ; दोनों तरफ देखता रहता था इंतजार : पता नहीं किधर से पेपर वेंडर आ जाये। खेल पृष्ठ निकाल लेता था और बांकी मुझे दे देता था । "आप सियासत पढ़ो भैया" कह कर खो जाता था 15-13, 15-12.... ब्लेड से कुछ तस्वीरें काटता और अपनी कॉपी में चिपकाता था। वो कॉपी एक रद्दी के शेल्फ पे पड़ा है। छत सर्द पड़ा है, ना कोई बैडमिंटन है , ना फीदर के बिखर जाने की कसक । पेपर वाला कब आता है किसी को खबर नहीं। ना कोई इंतजार है , ना जरुरत । अब कोई रोहन नहीं है। होस्टल में रहता है, और मैथ्स की कोचिंग लेता है। "उसे भी iitian बनना है" उसके डैड कहते हैं। उफ़, मैंने पागल कर दिया है सबको। अब कोई रोहन नहीं है। कोई रोहन बनना भी नहीं चाहता। किसी से रोहन बना भी नहीं जाता है। इस कमरे की खिड़की स

AAPki Dilli

सुना आपने  एक माचिस तिल्ली को किसी ने चिंगारी दे दी । जल उठा। उन्होंने कहा  "वक़्त दो वक़्त में phosphorous जलेगा, फिर काठी जलेगी , और फैसला आते  आते राख बचेगा ।" और आज  मशाल बन के दौड़ रहा है  वो दिल्ली के गलियारों में । अहंकारों के राख बिछे हैं सड़कों पे ।। Victor Hugo said "Nothing is powerful as an idea whose time has come."