जिंदगी कितनी बेपरवाह सी होती
जो न जश्न हो , न आरजू
न ख्वाइशें , न जुस्तजू
न जिस्म को जिस्म से कोई शिकायत होती
न कोई जहान की तलाश , न कोई जहन्नुम का खौफ
न कोई जंग , न कोई काफिला
न कोई हार जीत का सिलसिला
बेफ़िक्र से चलते हम और तुम
न आँखों में कोई दर्द होता
न चेहरे पे कोई जख्म
न कोई कसमकश का अफ़साना होता
न कोई बुलंदियों के किस्से
न कभी गिरते
न कभी उठते
सब चलते फिरते बुत होते
जिंदगी की तलाश में ||
जो न जश्न हो , न आरजू
न ख्वाइशें , न जुस्तजू
न जिस्म को जिस्म से कोई शिकायत होती
न कोई जहान की तलाश , न कोई जहन्नुम का खौफ
न कोई जंग , न कोई काफिला
न कोई हार जीत का सिलसिला
बेफ़िक्र से चलते हम और तुम
न आँखों में कोई दर्द होता
न चेहरे पे कोई जख्म
न कोई कसमकश का अफ़साना होता
न कोई बुलंदियों के किस्से
न कभी गिरते
न कभी उठते
सब चलते फिरते बुत होते
जिंदगी की तलाश में ||
Bahut khub bhaiya... Love to read your creations.!
ReplyDeleteThanks buddy
Delete