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Showing posts from September, 2016

काला चश्मा

तुम्हारी सारी तस्वीर एक एक कर पलट ली मैंने तुम्हें खोजने की कशमकस में | हर एक तस्वीर में तुम हँस रही हो ऐसा होता है क्या ? लेम्प की लौ थमी हुई है ऐसा होता है क्या ? तुम्हारी जुल्फें भींगी है और बारिस का नाम -ओ- निशान नहीं ऐसा होता है क्या ? मुझे वो एक तस्वीर चाहिए जिसमें तुम्हारे चोख के आँसू सूख रहे हों चेहरे पे | वो एक तस्वीर जिसमें तुम परेशान हो धूप से बचते बचते सड़क किनारे दौड़ रही हो | वो एक तस्वीर जिसमें तुम्हारी हँसी से फट जाते हैं बादल रेगिस्तान में उग उठता है फूल | वो एक तस्वीर जिसमें मेरी मुट्ठी में हो तुम्हारी जुल्फें मेरे होठों पे टिके हो तुम्हारी बंद आँखें वो एक तस्वीर जिसमें लफ्ज़ हो जो मेरी पत्थर सी आँखों पे सदियों से अटके पलकों को झपकने पे मजबूर कर दे || मुझे वो एक तस्वीर चाहिए जिसमें सबकुछ धुंधला सा हो हर एक हँसी का तात्पर्य ख़ुशी न हो हर एक सिकन, जख्म न हो | क्योंकि जिंदगी संघर्ष की सच्चाई है "काला चश्मा" वाली फेंटासी नहीं | क्योंकि मैं तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ फिल्में बनाना नहीं ||