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Showing posts from May, 2015

घर को जाना , और घर का हो जाना

एक आध डायरी , एक आध किताबें , दो टी-शर्ट काफी नहीं है क्या ? ये इतना बड़ा बड़ा ट्राली लेकर आप   कहाँ जाते हैं ? घर ? या फिर घर में भी  एक अपना शहर सजा रखा है आपने दो चार दिनों के लिए ही जा रहा हूँ , लेकिन इस उम्मीद से की घर जाऊंगा तो  घर में ही रहूँगा | घर को जाना , और घर का हो जाना अपने आप में एक संवेदनशील जिम्मेदारी है | घर जाने का मतलब है , कहीं से दूर होना और फिर घर के करीब आना | घर जा रहे हैं , तो अपने व्हाट्सप्प ,ट्विटर , फेसबुक चाट वाले फैमिली को दो चार दिनों के लिए बाई बाई कहिये , सलाम दुआ कीजिये और फिर लौटेंगे की उम्मीद जताईये | इस बार घर जाइये , और घर में रहिये | घर की दरो दीवारों को महसूस कीजिये , कितनी  सीज गयी हैं पुरानी ईंटें , खिड़कियों में कितना खोखलापन  है, अपने कितने अपने हैं आज भी , कितनी उम्मीद है उनकी आँखों में , कितनी थी और कितनी बच गयी है , यही वक़्त है हिसाब करने का | भिन्डी की सब्जी और रोटी खाते खाते , अगर घर में भी व्हाट्सप्प करते रहिएगा , तो चाची की आँखों की मुहब्बत , और मम्मी की आँखों का इश्क़ एक बार फिर से यूँ ही रह जाएगा , आपको एहसास नहीं होगा | मैं ये नहीं