It reminds me of old freshers days , we were three or may be four , including me .Lined up and asked to take a smoke , every one denied with an innocent excuse " I am sorry ,I don't "; and they were forced to take a sip . When it came to my turn , I didn't deny ,rather I changed the topic diplomatically , I said
" मैं सिगरेट तो नहीं पीता
मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ कि "माचिस है?"
बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूँ "
Hence I flipped the topic to a newer dimensions , point is they rather forgot to force me.
Happy Birthday Gulzar and a short poem :
तुम
और तुम्हारे दरियाओं के कांटे
तुम्हारे दीवारों पे उभरते स्केच
सारी बेचैन परछाइयाँ
तुम्हारे बोस्की ब्याहने का वक़्त
तुम्हारे सुर , तुम्हारी शहनाइयां
रातों के सन्नाटे
जुम्बिश , आहट , सरगोशियाँ
तुम्हारे जले बुझे अधकहे ख्यालों की राख
एक खामोश अपनापन है
हर एक पूर्णविराम में ||
तुम्हें देखते देखते मैंने
कितने लम्हें छिले हैं
कितनी बातें काटी है ,
कितनी रातें काटी है |
न है , न होगा कभी तुम सा कोई गुलज़ार |
P.S : Thanks Manish Kumar for correction .
You can read his blogs at
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.in/
" मैं सिगरेट तो नहीं पीता
मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ कि "माचिस है?"
बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूँ "
Hence I flipped the topic to a newer dimensions , point is they rather forgot to force me.
Happy Birthday Gulzar and a short poem :
तुम
और तुम्हारे दरियाओं के कांटे
तुम्हारे दीवारों पे उभरते स्केच
सारी बेचैन परछाइयाँ
तुम्हारे बोस्की ब्याहने का वक़्त
तुम्हारे सुर , तुम्हारी शहनाइयां
रातों के सन्नाटे
जुम्बिश , आहट , सरगोशियाँ
तुम्हारे जले बुझे अधकहे ख्यालों की राख
एक खामोश अपनापन है
हर एक पूर्णविराम में ||
तुम्हें देखते देखते मैंने
कितने लम्हें छिले हैं
कितनी बातें काटी है ,
कितनी रातें काटी है |
न है , न होगा कभी तुम सा कोई गुलज़ार |
P.S : Thanks Manish Kumar for correction .
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