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Showing posts from November, 2013

शायद सर्दी आ रही हैं ;

कुछ बात है  पानी की आखिरी घूँट की तरह  हलक पे अटक के रह गयी है |  लबों पे आने से डरती है | ख़ामोशी का धागा और दर्द की बिखरी मोतियाँ दोनों पड़े हैं टेबल पे ; कोई आये  इन्हें समेट कर एक तसब्बुर बनाये || कुछ बात है  भूले बिसरे रातों के टुकड़ों में लिपटा सा   जैसे ग्रेनाईट  का एक टुकड़ा  तुमने किसी नदी में उछाला हो ; अब ये कितना गहरा  जाएगा , किसे मालुम ! शायद कभी तह में दफ़न हो जाए ; शायद | कोई आये  दो लफ्ज़ कहे ; दो लफ्ज़ सुने  कोई सिलसिला चले | सिली सिली सी रातों की चुप्पी तो टूटे || कुछ बातें और भी हैं जैसे आजकल चाँद नहीं दिखता ; पता  नहीं  क्यूँ ? खिड़कियां बंद रहती हैं आज कल ; रूममेट को सर्द लग गयी हैं  | शायद | सितारे पहले फलक से उतर कर  गोद में बैठा करते थे ; आजकल वक़्त  नहीं मिलता | अब कोई बालकनी में हवा से बातें नहीं करता ; कमरे में रहते हैं , चुपचाप | शायद  सर्दी  आ रही  हैं ; शायद ||
A shear grief that I have swallowed by every passing minutes of late night ; A fire that I have felt coaxing my soul; Fear , insecurity and a glass of agony ; I have seen things roaming across the stars shining down from love to agony from agony to apathy from apathy to hatred from hatred to hostility from hostility to abhorrence . And love again with morning sunny rays yet grief sustains , fire sustains , fear sustains .

with love and prosperity a happy diwali