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Showing posts from March, 2016

पताका

मैं भी अपनी जेब में एक पताका लिए चलता हूँ | और इस इंतजार में चलता हूँ की एक दिन एक मोटी करची पे इस पताके को बाँध दूंगा | यही मेरा तुम्हारा पताका होगा और इसी के सामने हम - तुम सर झुकाएँगे नहीं, सर उठाया करेंगे | फिर तुम क्या और तुम्हारे खुदा का बच्चा क्या मंदिर क्या काबा क्या और नानक का ढाबा क्या मैं सबको एक कतार में कब्र में सजाऊंगा और गंगाजल छींट कर जला दूंगा | इसे तुम अपना विलय मत समझो यही तुम्हारा सृजन है; मैं तुम्हें जला कर कुंदन बनाऊंगा | और जबतक तुम जल रहे होगे मेरा साम्राज्य होगा और खूबसूरत होगा | अँधेरा मेरा खुदा होगा , जिसकी आगोश में तुम और हम एक जैसे नज़र आएंगे | ख़ामोशी मेरा देवता होगा जिसके सपथ तले तुम और हम सत्यं वद, प्रियं वद गाएंगे | मुहब्बत उसका प्रसाद होगा जिसे हम और तुम पाएंगे जिसे पाने  के लिए कतारें नहीं होंगी और अगर कतारें होंगी भी तो उन्हें काबू करने के लिए सरकारें नहीं होंगी | मुझे मालुम है तुम मीडिया की तरह अंगुली उठा उठा कर ये जानने की कोशिश करोगे की मेरे पताके का रंग क्या होगा ? जो मैं कभी नहीं बताऊंगा | कभी नहीं |

मेरा मिट्टी का घर है, छत चाहिए |

न फेसबुक चाहिए, न टिंडर चाहिए धुंए में दम घुंटता है, सिलिंडर चाहिए | न सन गिलास चाहिए न स्कर्ट चाहिए मेरा नंगा बदन है बुशर्ट चाहिए | न कागजात चाहिए न पेपर वेट चाहिए मेरी खाली प्लेट है ऑमलेट चाहिए | न कोई लिफ्ट चाहिए न कोई सीढ़ी चाहिए सस्ता जिगर है मेरा , मुझे बीड़ी चाहिए | न विस्की चाहिए न शरबत चाहिए मेरा मिट्टी का घर है, छत चाहिए |