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बार बार किसी शहर में खुद की तलाश करते करते , कुछ कुछ अपना सा लगने लगता है शहर | शहर उम्मीदों से बनता है , और जिस शहर में आपकी उम्मीद पलती है , वही आपका अपना शहर बन जाता है |
कॉफी डे की टेबलें , या आसामी चाय का
स्वाद शहर के साथ नहीं बदलता |
ना ही मॉल के एस्कलेटर्स बदलते हैं | अगर कुछ बदलता है , तो बदलता है शहर के साथ एक कशिश , एक अपनापन |
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इश्क़ में शहर भी बराबर का हकदार है | लोग रिश्तों के पड़ाव को शहर की गलियों से जोड़ते हैं | हर एक टावर , हर मोड़ अलग अलग यादों का पैमाइश है | अगर रिश्तों को जिन्दा रखना है , तो शहर को जिन्दा रखना होगा | अगर रिश्तों को खूबसूरत रखना है , तो इस शहर के हर एक नुक्कड़ के साथ एक खूबसूरत लम्हा जोड़ना होगा | अगर रिश्तों को बोली देनी है , तो इस शहर के बोल को समझना होगा | अगर शहर की जरुरत है , की सड़कों पे साथ साथ न चलो , तो मत चलो | अगर शहर की जरुरत है समानान्तर रिक्शों पे चलो , तो चलो | शहर के साथ ढलो , एक दिन शहर तुम्हारे साथ ढलेगा | क्यों की शहर से ही इश्क़ है , शहर की कसमकश में तुम्हारे जाना की कसमकश है , शहर की फरमाइश में , तुम्हारे महबूबा की फरमाइश है | इश्क़ तब तक जिन्दा है , जब तक लम्हों में शहर जिन्दा है |
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