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The original story : 1. ईला


This is my first attempt with story writing. #criticism please.




ईला पेशे से राइटर थी ,तब जब मैं आखिरी बार उससे मिला था| तब दिल्ली में बारिस का मौसम था |
कम से कम दस साल तो हो ही गए होंगे , नहीं नहीं शायद १३ -१४ साल हो गए |तब वाजपेयी जी की सरकार हुआ करती थी |ट्विटर ,फेसबुक कुछ भी नहीं था |मैं संडे इवनिंग को उसे कॉल किया करता था ,वार्डन पिक किया करती थी और बड़े सियासती आवाज में चीखती  थी "अरे इल्ली ,दिल्ली से कॉल आया है " फिर  ..हलकी सी ख़ामोशी ..सीढ़ियों पे दौड़ते पैरों की खनक और अचानक से एक तेज तर्रार 
" हेल्लो" | 
"अरे मर्लिन जान ,तुम्हारी   पढ़ाई कैसी चल रही है ?"
मर्लिन जान .......| इसी नाम से मैं इला को पुकारा करता था,अरसों से | हम दोनों एक अफगानी राइटर के प्रशंसक थे और ये नाम उसी के किसी नोवेल से चुराया गया था |

   हम वही पुराने अंदाज में वही पुराने किस्से , वही पुराने कसमें वादे दुहराया करते थे | फेंटासी और सपनों के बीच एक  पतली सी रेखा होती है|ईला के हर लफ्ज़ उस पतली सी रेखा पे दौड़ा करते थे : सरपट , बिना रुके ; साँस टूटने का भी ख्याल नहीं रखती थी | और अंत  में  गुलज़ार के वही पुराने लाइन्स दुहराती थी जो मैं तब कहा करता था जब मैं हॉस्टल में रहता था| 
वही पुराने लाइन्स " ये घर मेरा नहीं / ये आँगन भी मेरा नहीं/ मुझे तो उस घर जाना है जिस  घर मेरा आसमान रहता है |"

 और इस तरह से कितने सारे कॉल्स के माध्यम से हमने  काफी कुछ तय कर रखा था| और जब कभी वक़्त मिलता हम उस काफी कुछ  से थोड़ा थोड़ा जीते थे: कभी डिनर के बहाने , कभी साथ साथ पोएट्री कॉन्सर्ट अटेंड करने के बहाने  | उस वक़्त दिल्ली में कवितायेँ  उफ़ान पे थी| वाजपेयी जी की सरकार का ये भी एक  रंग था | 

कभी कभी तो कॉन्सर्ट के अंदर हमारा अपना कॉन्सर्ट शुरू हो जाता था |काफी डिबेट्स और जद्दोजहद से हम तय किया करते थे : हमारे बच्चों का नाम क्या होगा ? हमारा घर कैसा होगा ?घर में चॉकलेट का जो फाउंटेन  होगा, कितना बड़ा होगा ? फलेवर्स  क्या क्या होंगे ?

वक़्त पसरता जा रहा था | मैं अपनी उलझनों में खींचता जा रहा था और ईला अपनी पोएट्री में डूबती जा रही थी | काफी कुछ पढ़ने के बाद उसने  एक  अरबी लफ्ज़ खोज निकाला था "इनारा" | 
"क्यूँ ना हम अपनी बेटी का नाम इनारा रखें , क्यूट है ना ?" 
ठीक इसी तरह से हमने काफी कुछ और भी तय किया था |इनारा के जूते कैसे होंगे ,इनारा के कपड़े कैसे होंगे , वो कितना झूठ बोलेगी और कितना सच ?
............................................................................................................................
आज लगभग १३ - १४ साल बाद ईला  से मिला | शायद में तैयार नहीं था |शायद दिल्ली तैयार नहीं थी |पोएट्री करने वाले झाड़ू चला रहे थे |  दिल्ली का माहौल काफी कुछ बदल चूका था  इतने दिनों में|आज १३ - १४ साल बाद भी ईला राइटर है | 

मैंने उसे अपने घर बुलाया | वो काफी ख़ुश नज़र आ रही थी | हम दोनों उस दौड़ से काफी आगे निकल आये थे |अब हम सपने नहीं बुनते हैं  ; हकीकत हमें बुना करती है |
यही सब सोचते सोचते मैं ईला  को लेकर घर पहुँच गया |शायद सायरन की आवाज सुनकर अनीता बाहर  निकली ,या फिर वो खिड़की पे खड़ी हमारा वेट कर कर रही थी |

मैंने उतारते ही अनीता से पूछा
 " इना आयी की नहीं स्कूल से ?"
"सो रही है .." अनीता ने बेमन से कहा | अभी तक आसमान से बातें कर रही इला ने अचानक से पूछा "इना कौन ? तुम्हारी बेटी है ? क्यूट है ? कितनी बड़ी है ? किस ग्रेड में है ? " 
मैंने मुस्कराते हुए कहा " फोर्थ  ग्रेड में है |"

डाइनिंग टेबल पे बातों के कुछ इत्तिफ़ाक़ी सिलसिले चले | ज्यादातर बातें  पत्रकारिता और राइटिंग पे हुई |
दिल्ली की दुपहरी काफी लम्बी चलती है | दोपहर के तीन बज रहे थे | इना जग चुकी थी | जाते जाते इला ने इना से पूछ ही लिया "बेटे नाम क्या है तुम्हारा ?"
"इनारा रोबिन "

इस इना से इनारा तक के सफ़र ने ईला को काफी पीछे  खींच लिया था | वो सारे पुराने किस्से , वो सारी पुरानी यादें , पोएट्री कॉन्सर्ट ,वो सारे डिबेट्स जिसके तहत हमने ये तय किया था की हमारे बच्चों का नाम क्या होगा , एक  पल के लिए ईला  की आँखों पे उतरने लगा |
" कैसे जीते हो सपनों को रोबिन ? हकीकत से टकराने का डर नहीं लगता ?" काफी अधिकारपूर्ण लफ्ज़ थे ये ईला  के |
मैंने कहा " फेंटासी और सपनों के बीच एक  पतली सी रेखा होती है|कोशिश करता हूँ  उस लाइन पे सरपट दौड़ता रहूँ |"

टैक्सी के शीशे को ऊपर करते करते ईला ने वही पुराने लफ्ज़ दुहराये
 "ये घर मेरा नहीं / ये आँगन भी मेरा नहीं/ मुझे तो उस घर जाना है जिस  घर मेरा आसमान रहता है |"

एक  मिनट के लिए लगा पुरानी ईला  वापस आ गयी | वाजपेयी जी के सरकार  की याद आ गयी |मैं एक  टक भागती टैक्सी को देख रहा था |कुछ छूटा जा रहा था |
खैर ....खिड़की से अनीता की आवाज आयी " रोबिन PMO से कॉल है .कुछ अर्जेंट है...........

Read The original story :2.ईला  here

Comments

  1. Kuch yaaden idhar bhi darwaja khatkhata rhi hen... Jane soi thi khan woh.. Aaj jag ke hame jaga rhi hen.. Brilliant job Anupam!!!

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    Replies
    1. thanks but why are you anonymous .MR anonymous.

      Delete

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