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हलक पे अटका रहा चर्चा तेरा |
कुछ किफायती लम्हों में
उफनता रहा रुतबा तेरा ;
खिडकियों के शीशों पे
बे पर्द सा चेहरा तेरा ;
दौड़ती परछाईयों में
कुछ मिला जुला मोहरा तेरा ;
शाम कुछ अजीब थी
हलक पे अटका रहा चर्चा तेरा ||
देर तक तेरी दिल्लगी से
लड़ता रहा जज्वा मेरा
देर तक तेरी आँखों में
कुछ ढूंढता रहा चेहरा मेरा
जुल्फों में उलझा रहा
इत्तेफाके कोई सिलसिला
कुछ अश्क मिले , कुछ गीत मिले
और हर गीत में मेरे लफ्ज़ मिले
कुछ टूटे टूटे वादे मिले
कुछ सीधे साधे इरादे मिले
हम ये सोच कर थम से गए
की खोजें हम क्या क्या तेरा !
शाम कुछ अजीब थी
हलक पे अटका रहा चर्चा तेरा ||
इस गली में हम किस से कहें
बेख़ौफ़ सा किस्सा तेरा
इस गली में हम किस से मिलें
समझेगा कौन वास्ता मेरा
मेरे सिवा है कौन और
चुप चुप गिनता लम्हा तेरा
ख्वाइश तेरी ,फरमाइश तेरी
उल्फत तेरा ,पर्दा तेरा
शाम कुछ अजीब थी
हलक पे अटका रहा चर्चा तेरा ||
अब चिरागों से हम और मांगें क्या
मिल जो गया सेहरा तेरा ;
आशिकी तेरी ,मोहबत तेरा
और होठों से सौदा तेरा ;
शाम कुछ अजीब थी
हलक पे अटका रहा चर्चा तेरा ||
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