पिछले चंद दिनों से एक टेक्नोलॉजी ब्लॉग तैयार कर रहा था और इन चंद दिनों में मैंने ना जाने कितने टेक्स्ट नज़रअंदाज कर दिए जिसमें लिखा आता था "तुम्हारी पोएट्री नहीं आ रही आजकल" | टेक्नोलॉजी ब्लॉग तैयार हो गया है, अभी व्हाट्सएप्प ग्रुप पे घूम रहा है, टेस्टिंग पीरियड में है समझिये | एक दिन पब्लिक में भी लाएंगे तो इत्तला करेंगे | फिलहाल ये एक कुछ कुछ गजल जैसा पढ़िए | "ह्रदय के मझधार" इस खूबसूरत लफ्ज़ की प्रेरणा मुझे एक बंगाली गीत से मिली जिसके बोल हैं : "तोमाय हृद मझार राखिबो छेड़े दिबो ना" | इस एक गजल से मैं "क से कलकत्ता" नाम का एक सीरीज शुरू कर रहा हूँ जिसमें ऐसी नज़्में, कवितायेँ, गजल लिखी जायेगी जो कहीं कहीं ना कहीं कलकत्ता के गीतों से, या फिर गलियों से प्रेरित होंगी | ये सिलसिला चलता रहेगा | फिलहाल गजल पढ़िए
ह्रदय के मझधार में रखूँगा मैं तुझे
कुछ इस तरह से प्यार मैं रखूँगा मैं तुझे ||
जिंदगी जश्न हो या हो कू-ए-तिश्नगी
हर दौड़ के सरकार में रखूँगा मैं तुझे ||
तुम मेरे किस्से में दर्ज रहो न रहो
अपने हर एक अशआर में रखूँगा में तुझे ||
वो एक दुकां, जिसमें बारिस की छवि बिकती है
अपने उस एक कारोबार मैं रखूँगा मैं तुझे ||
हम हों, तुम हो और कमरे भर की ख़ामोशी
उस एक छोटे से संसार मैं रखूँगा मैं तुझे ||
ह्रदय के मझधार में रखूँगा मैं तुझे
कुछ इस तरह से प्यार मैं रखूँगा मैं तुझे ||
जिंदगी जश्न हो या हो कू-ए-तिश्नगी
हर दौड़ के सरकार में रखूँगा मैं तुझे ||
तुम मेरे किस्से में दर्ज रहो न रहो
अपने हर एक अशआर में रखूँगा में तुझे ||
वो एक दुकां, जिसमें बारिस की छवि बिकती है
अपने उस एक कारोबार मैं रखूँगा मैं तुझे ||
हम हों, तुम हो और कमरे भर की ख़ामोशी
उस एक छोटे से संसार मैं रखूँगा मैं तुझे ||
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