मोमिन ने अपने वक़्त में जब ये शेर दर्ज किया की " तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता " तो ग़ालिब कह बैठे ; " मोमिन ये एक शेर मुझे दे दो , मेरी पूरी जमीनी ले लो " |
अलग अलग दौड़ के मजनुओं ने इस शेर को अलग अलग तरीके से अपनी मेहबूबा के लिए दोहराया है | मैं आज गुलज़ार के लिए दोहराता हूँ |
मुक्त दो चार लफ़्ज़ों में एक पूरी जिंदगी समेट लेने की हैसियत रखनेवाले गुलज़ार जाने अनजाने हमारे और आपके पास हर उस लम्हे में होते हैं जब कोई दूसरा नहीं होता |
कभी कोई आपके कंधे पे हलके हथेलियों से मारता है , पूछता है " माचिस है ? , तो आप अनायास कह जाते हैं
" मैं सिगरेट तो नहीं पीता
मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ
"माचिस है?"
बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूँ |"
यूँ ही कभी कोई आश्ना , आपसे पूछ बैठे जो "क्या भेजोगे इस बरस ? " तो भींगा सा एक ख्याल आता है
" गुलों को सुनना जरा तुम सदायें भेजी हैं / गुलों के हाथ बहुत सी दुआएं भेजी हैं
तुम्हारी खुश्क सी आँखें भली नहीं लगती / वो सारी यादें जो तुमको रुलायें भेजी हैं || "
जो कोई तन्हा…
अलग अलग दौड़ के मजनुओं ने इस शेर को अलग अलग तरीके से अपनी मेहबूबा के लिए दोहराया है | मैं आज गुलज़ार के लिए दोहराता हूँ |
मुक्त दो चार लफ़्ज़ों में एक पूरी जिंदगी समेट लेने की हैसियत रखनेवाले गुलज़ार जाने अनजाने हमारे और आपके पास हर उस लम्हे में होते हैं जब कोई दूसरा नहीं होता |
कभी कोई आपके कंधे पे हलके हथेलियों से मारता है , पूछता है " माचिस है ? , तो आप अनायास कह जाते हैं
" मैं सिगरेट तो नहीं पीता
मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ
"माचिस है?"
बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूँ |"
यूँ ही कभी कोई आश्ना , आपसे पूछ बैठे जो "क्या भेजोगे इस बरस ? " तो भींगा सा एक ख्याल आता है
" गुलों को सुनना जरा तुम सदायें भेजी हैं / गुलों के हाथ बहुत सी दुआएं भेजी हैं
तुम्हारी खुश्क सी आँखें भली नहीं लगती / वो सारी यादें जो तुमको रुलायें भेजी हैं || "
जो कोई तन्हा…
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