Snapshot of gulmohar tree near by balcony (pre and post ) |
हर एक बार जब कोई कानूनी फैसला हमें सटीक सा नहीं लगता , हम ये कह कर अखबार के पन्ने उलट देते हैं " कानून अँधा हो गया है | " और हर बार जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है , हम ये कह कर पन्ने उलट देते हैं की देखो ऊपर वाला सजा दे रहा है |
ये एक नज़्म , उस गुलमोहर के लिए है , जो अर्सों से मेरे नज़्मों का हिस्सा रहा है | चले आ रहे किसी नाटक का आखिरी सीन है ये , ट्रेजेडी है , प्रोटैगनिस्ट मरने वाला है ; कुछ कुछ 70 के दशक की फिल्मों की तरह जिसके आखिरी सीन में अमिताभ मर जाते हैं | खैर जो भी है पढ़िए :
वो एक गुलमोहर
जो कल तक बड़ा हसीन था |
जिसके फूलों पे पलने वाले भंवरे
कभी कभी मेरे कमरे में आते थे ;
और मैं
ख़ासा परेशाँ होता था |
वो एक गुलमोहर रहा नहीं ||
वो एक गुलमोहर
जो आसरा था
सारे बेगुनाह परिंदों का ;
जिसके ओट में आकर इन्होनें
आजाद रविश की तलाश छोड़ दी |
वो एक गुलमोहर रहा नहीं ||
वो एक गुलमोहर
जो बड़े अर्सों से
मेरे नज़्मों का किरदार था |
जो बिना इजाजत
मेरे तस्सवुर के
कैनवस पे उतर आता था ;
वो एक गुलमोहर रहा नहीं ||
बस एक एहसास रह गया है :
आखिर
किसके गुनाहों की सजा
किसे मिल रही है !
हमने ख़ुदा को कितना अँधा बना दिया है ;
और एक उम्मीद रह गयी है :
इसी कोख से फिर कभी
एक नया सृजन होगा |
फिर एक गुलमोहर आएगा ;
फिर एक तूफ़ान आएगा ;
सिलसिला चलता रहेगा
हसीन मासूमों के क़त्ल का ||
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