आईने के बिखर जाने से , चेहरे बिखर जाएंगे क्या
उनके चले जाने से , नज़्म संवर जाएंगे क्या ?
जो वो पूछें , किस बात से रंजिश है जमीं
शिकायतों के कच्चे चिठ्ठे , हम पढ़ पाएंगे क्या ?
यूँ तो पर्चीयां बाँट गयी हैं हमारे मुकद्दर की
जब वो सामने आयेंगें , दो बात कर पाएंगे क्या ?
जिस रफ़्तार से चलते हैं हम भरे बाजार में
जो एक बार ओझिल हुए , फिर नज़र आएंगे क्या ?
उनके सिरहाने से , ख़ास दूर नहीं मेरा शहर
यूँ ही कभी दिल्लगी में , इस शहर आएंगे क्या ?
आँखों में बेनूरी लिए भटकता हूँ जानां
जो वो पहचान बैठे तो , वापस इधर आएंगे क्या ?
उनके चले जाने से , नज़्म संवर जाएंगे क्या ?
जो वो पूछें , किस बात से रंजिश है जमीं
शिकायतों के कच्चे चिठ्ठे , हम पढ़ पाएंगे क्या ?
यूँ तो पर्चीयां बाँट गयी हैं हमारे मुकद्दर की
जब वो सामने आयेंगें , दो बात कर पाएंगे क्या ?
जिस रफ़्तार से चलते हैं हम भरे बाजार में
जो एक बार ओझिल हुए , फिर नज़र आएंगे क्या ?
उनके सिरहाने से , ख़ास दूर नहीं मेरा शहर
यूँ ही कभी दिल्लगी में , इस शहर आएंगे क्या ?
आँखों में बेनूरी लिए भटकता हूँ जानां
जो वो पहचान बैठे तो , वापस इधर आएंगे क्या ?
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