इतना तो तय हो गया है
गुजरते वक़्त के साथ
न तुम , तुम रहे ;
न हम ,हम रहे |
रुत बदला है ,
तो कुछ कुछ रुख भी बदला है |
हाँ
तब की बात और थी
जब भी मिलते थे
तितलियों , दुपट्टे की बातें करते थे
आसमां नीला है , आसमानी है , टरक्वीज़ है
रंग , रंग पे लड़ते थे |
बेजोड़ तैयारी से
एक दूसरे के लिए संवरते थे |
तुम्हारा आधा वक़्त तो
इस कसमकश में गुजर जाता था
कॉफी पियें , तो कौन सा ?
जिंदगी जियें , तो किस तरह ?
और
लंच टेबल पे जब एक चम्मच
उचक के हाथों से गिर जाता था
दोनों जोर के हँसते थे |
अब जब भी मिलते हैं
नौकरी , पेशा और अकादमी की बातें होती है
चम्मच , स्पून बन गया है ;
कभी गिरता नहीं |
और जो गिर जाए
तो क़यामत आती है
हंसी आती नहीं ||
कितना कुछ बदल गया है जानां
एक चांदनी सफर से उतरकर
बेजार दरिया में आ गए हैं हम |
हम भी वैसे ही हो गये हैं ;
जिनकी खिल्लियाँ उड़ाया करते थे ||
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