Poem is inspired from Sankha Aditya's "Who will apologise for these ? "
फूटपाथ के किनारे किनारे
अब और घास उगते नहीं ||
रिफाइनरी के आगोश वाला वो चाँद
कितना स्याह पड़ गया है ;
जुबान खोलता है कुछ कहने को
धुँआ भरा है कंठ में
अब और सांस उगते नहीं ||
याद है
अहले सुबह बाँध किनारे
करचियां काटा करते थे
ठिठुर गए हैं सारे कोंपले
अब और बांस उगते नहीं ||
कितना कचरा खाता है आदमी
पथ्थर बांधने की अब और जरुरत नहीं ,
फेंक दो किसी पास की बेंती में
आज कल लाश उगते नहीं ||
करचियां =Thin bamboo culm ,used as tooth brush in villages .
बेंती = River stream
आज कल लाश उगते नहीं = with changing scenario and excessive use of pesticides and all , we are being fed with so much of useless craps , that if some one attempts a murder and throws the body in river , it won't float , it will sink . This is narrator's imaginative anger that challenges the notional science.
फूटपाथ के किनारे किनारे
अब और घास उगते नहीं ||
रिफाइनरी के आगोश वाला वो चाँद
कितना स्याह पड़ गया है ;
जुबान खोलता है कुछ कहने को
धुँआ भरा है कंठ में
अब और सांस उगते नहीं ||
याद है
अहले सुबह बाँध किनारे
करचियां काटा करते थे
ठिठुर गए हैं सारे कोंपले
अब और बांस उगते नहीं ||
कितना कचरा खाता है आदमी
पथ्थर बांधने की अब और जरुरत नहीं ,
फेंक दो किसी पास की बेंती में
आज कल लाश उगते नहीं ||
करचियां =Thin bamboo culm ,used as tooth brush in villages .
बेंती = River stream
आज कल लाश उगते नहीं = with changing scenario and excessive use of pesticides and all , we are being fed with so much of useless craps , that if some one attempts a murder and throws the body in river , it won't float , it will sink . This is narrator's imaginative anger that challenges the notional science.
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