कभी कभी शहर को उन पंछियों के नज़र से भी देखना चाहिए , जो किसी मौसम या हालात में शहर आते हैं और फिर शाम होते ही घर को लौट जाते हैं | मैं भी कुछ कुछ वैसा ही हूँ , लौटते वक़्त कावेरी रेस्त्रां से खाना पैक करवाते करवाते , कुछ ऐसा एहसास हुआ | ये ब्लॉग कावेरी में बिताये गए उस आधे घंटे के नाम है , ये ब्लॉग वेटिंग टाइम के नाम है , और एक शहर के नाम है |
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बार बार किसी शहर में खुद की तलाश करते करते , कुछ कुछ अपना सा लगने लगता है शहर | शहर उम्मीदों से बनता है , और जिस शहर में आपकी उम्मीद पलती है , वही आपका अपना शहर बन जाता है |
कॉफी डे की टेबलें , या आसामी चाय का
स्वाद शहर के साथ नहीं बदलता |
ना ही मॉल के एस्कलेटर्स बदलते हैं | अगर कुछ बदलता है , तो बदलता है शहर के साथ एक कशिश , एक अपनापन |
हमने शहरों को बनाया है , अब शहरें हमें बनाती है | शहरें हमें सिखाती है , की ये जिंदगी का कौन सा मकां है , इस मकां के रिश्ते कितने नाजुक है | ये रिश्ते बस इंस्टाग्राम के स्क्रीन तक ही सिमित तो नहीं , इन रिश्तों में कितना वर्तमान है , और कितना भबिष्य |
इश्क़ में शहर भी बराबर का हकदार है | लोग रिश्तों के पड़ाव को शहर की गलियों से जोड़ते हैं | हर एक टावर , हर मोड़ अलग अलग यादों का पैमाइश है | अगर रिश्तों को जिन्दा रखना है , तो शहर को जिन्दा रखना होगा | अगर रिश्तों को खूबसूरत रखना है , तो इस शहर के हर एक नुक्कड़ के साथ एक खूबसूरत लम्हा जोड़ना होगा | अगर रिश्तों को बोली देनी है , तो इस शहर के बोल को समझना होगा | अगर शहर की जरुरत है , की सड़कों पे साथ साथ न चलो , तो मत चलो | अगर शहर की जरुरत है समानान्तर रिक्शों पे चलो , तो चलो | शहर के साथ ढलो , एक दिन शहर तुम्हारे साथ ढलेगा | क्यों की शहर से ही इश्क़ है , शहर की कसमकश में तुम्हारे जाना की कसमकश है , शहर की फरमाइश में , तुम्हारे महबूबा की फरमाइश है | इश्क़ तब तक जिन्दा है , जब तक लम्हों में शहर जिन्दा है |
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बार बार किसी शहर में खुद की तलाश करते करते , कुछ कुछ अपना सा लगने लगता है शहर | शहर उम्मीदों से बनता है , और जिस शहर में आपकी उम्मीद पलती है , वही आपका अपना शहर बन जाता है |
कॉफी डे की टेबलें , या आसामी चाय का
स्वाद शहर के साथ नहीं बदलता |
ना ही मॉल के एस्कलेटर्स बदलते हैं | अगर कुछ बदलता है , तो बदलता है शहर के साथ एक कशिश , एक अपनापन |
हमने शहरों को बनाया है , अब शहरें हमें बनाती है | शहरें हमें सिखाती है , की ये जिंदगी का कौन सा मकां है , इस मकां के रिश्ते कितने नाजुक है | ये रिश्ते बस इंस्टाग्राम के स्क्रीन तक ही सिमित तो नहीं , इन रिश्तों में कितना वर्तमान है , और कितना भबिष्य |
इश्क़ में शहर भी बराबर का हकदार है | लोग रिश्तों के पड़ाव को शहर की गलियों से जोड़ते हैं | हर एक टावर , हर मोड़ अलग अलग यादों का पैमाइश है | अगर रिश्तों को जिन्दा रखना है , तो शहर को जिन्दा रखना होगा | अगर रिश्तों को खूबसूरत रखना है , तो इस शहर के हर एक नुक्कड़ के साथ एक खूबसूरत लम्हा जोड़ना होगा | अगर रिश्तों को बोली देनी है , तो इस शहर के बोल को समझना होगा | अगर शहर की जरुरत है , की सड़कों पे साथ साथ न चलो , तो मत चलो | अगर शहर की जरुरत है समानान्तर रिक्शों पे चलो , तो चलो | शहर के साथ ढलो , एक दिन शहर तुम्हारे साथ ढलेगा | क्यों की शहर से ही इश्क़ है , शहर की कसमकश में तुम्हारे जाना की कसमकश है , शहर की फरमाइश में , तुम्हारे महबूबा की फरमाइश है | इश्क़ तब तक जिन्दा है , जब तक लम्हों में शहर जिन्दा है |
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