Hindi elocution 2015
P.S > script won team Bronze for RK .
कभी कभी ऐसा
एहसास होता है
की हमने खुद
अपने हाथों बुझा
दिए हैं , मुहब्बतों
के दिए जला
के |
हम सब किसी
न किसी कतार
के हिस्से हैं
| हर तरफ आवाजें
हैं , अज्ञात और
बेनिशान , ना जाने
किसको पुकार रही
हैं ? ना जाने
किसे बुला रही
है ? लोग भागे
जा रहे हैं
|
ये जो
हमारी लेक्चर , टूटोरियल
,प्रैक्टिकल की दुनिया
है ,ये जो
७.३० से
५.३० बजे
की दिनचर्या है
: इस कसमकश और
बेचैनी में , हमारे छुटपन
की आवारगी , कहीं
न कहीं दम
तोड़ती नज़र आती
है | मान्यवर
आज मेरे चर्चा
का विषय है
"आवारगी " |
मैं मानता हूँ , ये
विषय इस सदन
के बने बनाये
सिलसिले को एक
झटके में तोड़
देता है , खैर
यही तो आवारगी
है |
घबराइये नहीं | आवारा कोई
बुरा लफ्ज़ नहीं
है | आवारा से
ये मतलब नहीं
है की वो
जो सड़कों पे
सिटी बजा रहा
है ,लड़कियां छेड़
रहा है : हेलो
मैडम ई आम
योर एडम |
आवारा वो है
, जो जिंदगी के
बंधे धर्रे को
,जाने पहचाने रास्ते
को छोड़ जाता
है |
जिधर जातें हैं
सब
जाना
उधर
अच्छा
नहीं
लगता
मुझे पामाल रास्तों
का
सफर
अच्छा
नहीं
लगता
ये जो
मेरी आवारगी है
, ये मजाज़ लखनवी
वाली आवारगी है
शहर की रात
और
मैं
नाशाद
नाकारा
फिरूँ
जगमगाती जागती सड़कों
पर
आवारा
फिरूँ
गैर की बस्ती
है
, कब
तक
दर
बा
दर
मारा
फिरूँ
ऐ गम ए
दिल
क्या
करूँ
,ऐ
वहशते
दिल
क्या
करूँ
|
रास्ते में रुक
के
दम
लूँ
, मेरी
आदत
नहीं
लौट कर वापस
चला
जाऊँ
,मेरी
फितरत
नहीं
और कोई हमनवा
मिल
जाए
मेरी
फितरत
नहीं
ऐ गम ए
दिल
क्या
करूँ
ऐ
वहशते
दिल
क्या
करूँ
|
आवारगी हमें अपने
अंदर अपनी ही
एक तलाश की
गुंजाईश देती है
| और इस तलश
में अजीब अजीब
अफ़साने आते है
, दर्द भी होता
है , कभी कभी
थक के बैठ
जाते हैं |क्या
खूबसूरत शेर हैं
इस बेबसी के
नाम : हवा कुछ
ऐसी
चली
हैं
, बिखर
गए
होते
/ ये
सर्द
रात
ये
आवारगी
ये
नींद
का
बोझ
, हम
अपने
शहर
में
होते
, तो
घर
गए
होते
|
लेकिन इस तन्हाई
में , इस बेबसी
में एक कशिश
है , एक उन्मुक्ति
है , एक मुस्कराहट
है जो हम
और आप से
छीन गया है
| हमारे इस रोज़
मर्रे में , पुराने
लम्हें , पुराने रिश्ते ,कागज़
की कश्ती , बारिश
का पानी , सब
कुछ पीछे छूट
गया है |
१४ इंच की
स्क्रीन और १४
मेगा बाईट के
नेट स्पीड में
हम , एक संवेदना
विहीन सोशल नेटवर्क
तैयार कर रहे
हैं | हम वो
लोग हैं , जो
खुशियों के जीते
काम हैं , इंस्टाग्राम
में ज्याद कैप्चर
करते हैं | हम
वो लोग हैं
जिन्हें ट्विटर ट्रेंड्स तो
मालुम है , लेकिन
हवाओं के रुख
पता नहीं | आज
सूरज क्षितिज से
कितना ऊपर निकला
है , पता नहीं लेकिन
ये पता है
की हाउस ऑफ़
कार्ड्स का अगला
एपिसोड कब आएगा
| एक अनसुलझी प्रतिस्प्रधा
के सहभागी बन
गए हैं हम
| हम उतने खुश कभी
नहीं हैं , जितना
हम फेसबुक पर
नज़र आते हैं
, हम उतने बेचैन
कभी नहीं हैं
, जितना ट्विटर पर नज़र
आते हैं ,और
नहीं हम उतने
खूबसूरत हैं , जितना इंस्टाग्राम
के फिल्टर्स ने
हमें बना दिया
है |
हम भूल गए
हैं ,वो छुटपन
की आवारगी | हम
भूल गए हैं
किसी के मुस्कराहट
पे निसार होना
| हम भूल गए
हैं अपनी छोटी
सी अँधेरी कोठरी
से निकल कर
, रश्मियों से आँखें
मिलाना , हवाओं
को सीने से
लगाना | हम भूल
गए हैं किसी
के साथ दो
लम्हे जोड़ना |
बहुत जी चाहता
है
फुर्सत
हो
, तस्सबूर
हो
, तस्सबूर
में
बागबानी
हो
बहुत जी चाहता है इस आभासी जिंदगी में थोड़ा रूमानी
हो ,
जो गर्दिश में भी रहे , तो आसमान के तारे की
तरह
जियें बेफिक्र किसी आवारे की तरह |
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