तुम्हारे बेजुबान साये जब इस मोड़ से जाते हैं
ठहर जाती है नज़र दो चार लम्हे के लिए
उतर कर पटरियों से चला जाता हूँ
किनारे किनारे बिछे गिट्टियों पर |
एक्सीडेंट के खरासों को गिन गिन कर रातें कटती है |
साये बोलते नहीं ,
खैर इतने जख्म दे जाते हैं |
क्यों दे रखी है तुमने इसे
बेफिक्र घूमने की आजादी
अपने परछाईयों से लिपटकर क्यों नहीं सोती हो ?
ठहर जाती है नज़र दो चार लम्हे के लिए
उतर कर पटरियों से चला जाता हूँ
किनारे किनारे बिछे गिट्टियों पर |
एक्सीडेंट के खरासों को गिन गिन कर रातें कटती है |
साये बोलते नहीं ,
खैर इतने जख्म दे जाते हैं |
क्यों दे रखी है तुमने इसे
बेफिक्र घूमने की आजादी
अपने परछाईयों से लिपटकर क्यों नहीं सोती हो ?
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