जब अगस्त में बारिस आई थी
लेट मानसून का लिबास ओढ़े,
छत के किनारे किनारे से
रिसते हुए कुछ छीटें
मेरे बालकनी में आकर जमा हो जाय करती थी |
कुछ जज्बाती थपेड़े
कांच के खिड़कियों को नॉक करते रहते थे
जैसे एक अदबी मुस्कराहट लिए
कहते हों: " देर आया हूँ , खैर दुरुस्त आया हूँ |
मोहल्ले की बिजली आती थी , जाती थी ; आती थी , जाती थी ;
बारिशों ने एक पूर्णविराम लगा दिया |
सुना है कोई उम्रदराज सा पीपल
औंधे मुह गिरा था बिजली के तार पर ;
गले में V शेप बन गया था |
सुसाइड था , वो कहते हैं
बेचारा कब तक अपनी उम्र को खींचता
गला टूंड पड़ गया था , बारिश की ख्वाईश में |
सुना है जाते जाते लिख गया है एक नोट :
"कितनी देर लगा दी तूने आने में
मैंने जिंदगी के आखिरी लम्हे घुट घुट के जिए हैं |
वो पहली बार
मुझे एहसास हुआ :
एक उम्रदराज पीपल घर घर में रहता है ;
किसी को परवाह नहीं ||
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