मुहल्ले के बीचो बीच से एक पगडण्डी गुजरती है।
सुना है एक ज़माने से
हम और उनको बाँटते आई है ये।
हम में अहम् है
और
उनमें जिंदगी जीने की कशमकश ।
शाम होते ही निकल पड़ते हैं
पगडण्डी पे
ईंटों और खपरैल के टुकड़े लिए
हमारे और उनके बच्चे साथ साथ ।।
कोई यूनिक सा खेल है ये ।
सुना है एक ज़माने से
हम और उनको बाँटते आई है ये।
हम में अहम् है
और
उनमें जिंदगी जीने की कशमकश ।
शाम होते ही निकल पड़ते हैं
पगडण्डी पे
ईंटों और खपरैल के टुकड़े लिए
हमारे और उनके बच्चे साथ साथ ।।
कोई यूनिक सा खेल है ये ।
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