वो पहली बार जब अगस्त में बारिस आई थी लेट मानसून का लिबास ओढ़े, छत के किनारे किनारे से रिसते हुए कुछ छीटें मेरे बालकनी में आकर जमा हो जाय करती थी | कुछ जज्बाती थपेड़े कांच के खिड़कियों को नॉक करते रहते थे जैसे एक अदबी मुस्कराहट लिए कहते हों: " देर आया हूँ , खैर दुरुस्त आया हूँ | मोहल्ले की बिजली आती थी , जाती थी ; आती थी , जाती थी ; बारिशों ने एक पूर्णविराम लगा दिया | सुना है कोई उम्रदराज सा पीपल औंधे मुह गिरा था बिजली के तार पर ; गले में V शेप बन गया था | सुसाइड था , वो कहते हैं बेचारा कब तक अपनी उम्र को खींचता गला टूंड पड़ गया था , बारिश की ख्वाईश में | सुना है जाते जाते लिख गया है एक नोट : "कितनी देर लगा दी तूने आने में मैंने जिंदगी के आखिरी लम्हे घुट घुट के जिए हैं | वो पहली बार मुझे एहसास हुआ : एक उम्रदराज पीपल घर घर में रहता है ; किसी को परवाह नहीं ||
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |