पूरे दिन से लम्हा लम्हा चुरा कर
उसने एक लेटर तैयार किया था|
लफ्ज़ -लफ्ज़ को माणी के माफिक
कच्चे से धागे में पिरोया था |
नीचे फुटनोट में लिखा था : " धागे कच्चे हैं ,कमजोर नहीं |"
एक वक़्त के लिए तो लगा :
किसी ने एक पूरा कलेण्डर टांग दिया है लेटर में |
कुछ डेट्स पे एक लाल घेरा लगा के लिखा था
" इस तारीख को बचा कर रखना , सेव द डेट "
कुछ डेट्स के किनारे किनारे महीन नन्हें से लफ्ज़ बुने थे
"चलो ना चाँद का एक टुकड़ा तोड़ के तुम्हें खिलाएं "||
कहीं कहीं
कुछ नीले स्याह कट के निशान थे
कुछ खामोश से लफ्ज़ थे ; कोई पढ़ ना पाये |
कहीं कहीं
एक दो नज़्म पिन किये गए थे ,
जंग (रस्ट ) के कुछ निशान आ गए थे
शायद पिछली बारिस की बात होगी |
लिखा था :
"जैसे एक स्टेनलेस स्पून ,
छिटक के गिर गया हो हाथों से ;
तेरी मध्यान सी साँस ,अटक आयी है होठों पे ;
कब तक खींचता रहूँ ,मैं तारीखों में तुझे
आ फलक से उतर कर मेरी जमीं पर तो आ ||"
कुछ कहानियों को पेस्ट करके
लिफाफों में रख दिया था |
डेट डाल के लिख रखा था
"कुछ सपनों के स्केच छिपे हैं अंदर ,
पूरा लेटर तैयार था |
उसने सोचा
इस कच्चे धागे में टँके लफ्ज़ को ,
स्क्रीन से जमीन पर उतारते हैं ;
एक प्रिंट आउट निकालते हैं ||
............................................................
शाम को जब कमरे में वापस लौटा
पलट कर टेबल से टकरा गया ,
लफ़्ज़ों के माणी माणी बिखर गए जमीं पर ;
खैर चुन चुन के तो रख लिए हैं ,जेब में उन्हें
प्रिंट आउट अब फिर कभी |
अपने ही लफ़्ज़ों फंस के रह गया था शायर ||
उसने एक लेटर तैयार किया था|
लफ्ज़ -लफ्ज़ को माणी के माफिक
कच्चे से धागे में पिरोया था |
नीचे फुटनोट में लिखा था : " धागे कच्चे हैं ,कमजोर नहीं |"
एक वक़्त के लिए तो लगा :
किसी ने एक पूरा कलेण्डर टांग दिया है लेटर में |
कुछ डेट्स पे एक लाल घेरा लगा के लिखा था
" इस तारीख को बचा कर रखना , सेव द डेट "
कुछ डेट्स के किनारे किनारे महीन नन्हें से लफ्ज़ बुने थे
"चलो ना चाँद का एक टुकड़ा तोड़ के तुम्हें खिलाएं "||
कहीं कहीं
कुछ नीले स्याह कट के निशान थे
कुछ खामोश से लफ्ज़ थे ; कोई पढ़ ना पाये |
कहीं कहीं
एक दो नज़्म पिन किये गए थे ,
जंग (रस्ट ) के कुछ निशान आ गए थे
शायद पिछली बारिस की बात होगी |
लिखा था :
"जैसे एक स्टेनलेस स्पून ,
छिटक के गिर गया हो हाथों से ;
तेरी मध्यान सी साँस ,अटक आयी है होठों पे ;
कब तक खींचता रहूँ ,मैं तारीखों में तुझे
आ फलक से उतर कर मेरी जमीं पर तो आ ||"
कुछ कहानियों को पेस्ट करके
लिफाफों में रख दिया था |
डेट डाल के लिख रखा था
"कुछ सपनों के स्केच छिपे हैं अंदर ,
इन्हें सँवरने दो |"
पूरा लेटर तैयार था |
उसने सोचा
इस कच्चे धागे में टँके लफ्ज़ को ,
स्क्रीन से जमीन पर उतारते हैं ;
एक प्रिंट आउट निकालते हैं ||
............................................................
शाम को जब कमरे में वापस लौटा
पलट कर टेबल से टकरा गया ,
लफ़्ज़ों के माणी माणी बिखर गए जमीं पर ;
खैर चुन चुन के तो रख लिए हैं ,जेब में उन्हें
प्रिंट आउट अब फिर कभी |
अपने ही लफ़्ज़ों फंस के रह गया था शायर ||
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