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Showing posts from March, 2014

TITLI

वो हर रोज़ मेरे दरवाजे आती थी लटकते पर्दों से झूलते झूलते कहती थी "पता है गार्डन में तितलियों का एक सैलाब आया है " वो सारे ख्वाब डूब गए , आज एक नया ख्वाब आया है ||

Sunday poetry

1.  To Gulzar तुम्हें देखते देखते मैंने  कितनी रातें काटी है  कितने लम्हें छीले हैं  कितनी बातें काटी है | ना है , ना होगा कभी  तुमसा कोई गुलज़ार || 2. YAAD HAI US DIN याद है उस दिन  सलाखों पे हल्की हल्की बारिश ठहर रही थी | थोड़े वक़्त के लिए ,रौशनी आयी थी इलाके में  पड़ोस से टेलीविज़न की आवाज आ रही थी ; शायद पहली बार  हमनें कसमें उठायी थी , साथ मरने जीने की आकर देखो  वही सलाखें ,वही रौशनी ,वही रात पश्मीने की ||

CAFE COFFEE DAY

याद है उस दिन  कॉफी डे के टेबलों पे  मैंने एक बिस्कुट का  पैकेट दिया था तुम्हें | तुमने तोड़ तोड़ कर टुकड़े टुकड़े सबों में बाँट दिए थे | फॉर्मेलिटी की बेनज़ीर मिसाल पेश की थी तुमने ; ये कितना वाजिब है ? कोई तुम्हें पूरा इश्क़ दे   तुम थोड़ा थोड़ा कर बाँट दो ||

Diary Entry : 18th March

पूरे दिन  से लम्हा लम्हा चुरा कर  उसने एक लेटर तैयार किया था| लफ्ज़ -लफ्ज़ को माणी के माफिक  कच्चे से धागे में पिरोया था | नीचे फुटनोट में लिखा था : " धागे कच्चे हैं ,कमजोर नहीं |" एक वक़्त के लिए तो लगा : किसी ने एक पूरा कलेण्डर टांग दिया है लेटर में | कुछ डेट्स पे एक लाल घेरा लगा के लिखा था  " इस तारीख को बचा कर रखना , सेव द डेट " कुछ डेट्स के किनारे किनारे महीन नन्हें से लफ्ज़ बुने थे  " चलो ना चाँद का एक टुकड़ा तोड़ के तुम्हें खिलाएं "|| कहीं कहीं  कुछ नीले स्याह कट के निशान थे  कुछ खामोश से लफ्ज़ थे ; कोई पढ़ ना पाये | कहीं कहीं  एक दो नज़्म पिन किये गए थे , जंग (रस्ट ) के कुछ निशान आ गए थे  शायद पिछली बारिस  की बात होगी | लिखा था : " जैसे  एक स्टेनलेस स्पून , छिटक के गिर गया हो हाथों से ; तेरी मध्यान सी साँस ,अटक आयी है होठों पे ; कब तक खींचता रहूँ ,मैं तारीखों में तुझे  आ फलक से उतर कर मेरी जमीं पर तो आ ||" कुछ कहानियों को पेस्ट करके  लिफाफों में रख दिया था | डेट डाल के लिख रखा था  " कु...

NOTICE BOARD

All general championship activities in campus have been stalled since March 8 ,2014. An abominable lull concerts the atmosphere.This poetry is a concerned reflection  शीशे के भीतर चमकते लाल वेलवेट  पहले कभी नज़र नहीं आये  कागजों   पोस्टरों , पॉइंट्स टेबलों , ने छिपा कर रखा था| अब नोटिस बोर्ड  लगभग सर्द पड़ गया है || इवेंट से एक रात पहले कोई आर्टिस्ट एक बेनज़ीर पोस्टर बनता था  "बी देयर टू चीयर"  अब इसकी भी  जरुरत नहीं || जो कागजों पे congrax लिख कर चिपकाया जाता था ; हर एक जीत , हर एक हार पर  वही पुराना लफ्ज़ चिल्लाया  जाता था ; और जो साजो सामान तैयार रखे हैं  अब इनका क्या होगा ?  नोटिस बोर्ड  खामोश कब तक इस गैलरी में लटके रहेंगे ?

होली

सबने मिलकर एक दूसरे के टी-शर्ट फाड़ दिए  पानी कीचड़ अबीर - सबीर : अर्ध नग्न जुलूस निकला है  पुराने इश्क़  पे रंग चढ़ाने| और फिर एक रस्म  सोप ,शैम्पू ,फेस वॉश परत दर परत रंग उतारने का  . खैर कुछ रंग चेहरे पे छप जाते हैं ; इश्क़ के छीटों के माफिक दिलों पे जम जाते हैं | उतारने से नहीं उतरते , उतारने से नहीं उतरते ||

कमीज़

हर एक बार स्टेज पे उतरने से पहले  तुम्हारे तोहफे के कमीज़ को डब्बे से निकलता हूँ  उतरते चाँद के साथ ,  तुम्हारी अंगड़ाइयों को जीते जीते  इस्त्री चलाता हूँ ; की हर एक सिकन जाती रहे  फिर भी वो हकीकत ,सराफत , और इश्क़ के छीटें बची रह जाए || एक मुख़्तसर सी बात है : मुझे तुमसे प्यार है || मुख़्तसर : In short 

The original story : 2.ईला

The original story :1.ईला can be read here  The original story -1 This story is a tribute to #InternationalWomen'sDay. मुहल्ले के लोगों ने उसका नाम गोर्की रख दिया | अस्पताल से जैसे ही आयी ,देखने वालों का एक तांता सा लग गया | बड़े दिनों बाद अस्पताल से कोई बेटी आयी थी | वक़्त ढलता गया और  गोर्की वक़्त के साथ डूबती गयी | सबकुछ ठीक  चल रहा था की अचानक एक दिन गोर्की ने कहा " मम्मी , मेरे सारे दोस्त कोचिंग जा रहे हैं , मुझे भी इंजीनियर बनना है , इतनी अच्छी तो मैथ्स है मेरी  " | गोर्की दसवीं पास  करने  से बस कुछ  कदम दूर थी ,और उसने पूरा मन बन लिया था दोस्तों के  साथ कोई अच्छी कोचिंग ज्वाइन करने का |  मम्मी  उस वक़्त  तो कुछ नहीं बोली  ,खैर रात  को  डिनर  टेबल पे फिर से बात चली | गोर्की अपने तस्सबुर के कैनवास की अकेली मालिकिन थी | इतनी आसानी से अपने सपने को डूबने कैसे देती |गोर्की मम्मी की ख़ामोशी भांप चुकी थी फिर भी एक बार और पूछने में क्या जाता था |  डिनर टेबल पे मम्मी खामोश ही रही खैर जाते जाते उन्होंने कहा ...