जब इस समंदर में
तुम अकेली लुटेरी थी
तब की बात और थी
बस तुम ही एक सुनहरी थी |
तब की बात और थी
बिना किसी रोक टोक के
व्हाट्सप्प के चैट में
तुम सबसे अव्वल आती थी |
बंद बंद सी अर्थ व्यवस्था थी तब,
बंद बंद दरवाजे थे ;
तुम रोती थी, गाती थी
बस तुम्हारी आवाजें थी ;
किसी को आने की इजाजत ना थी तुम्हारे सिवा
तब की बात और थी |
तुम अकेली लुटेरी थी
तब की बात और थी
बस तुम ही एक सुनहरी थी |
तब की बात और थी
बिना किसी रोक टोक के
व्हाट्सप्प के चैट में
तुम सबसे अव्वल आती थी |
बंद बंद सी अर्थ व्यवस्था थी तब,
बंद बंद दरवाजे थे ;
तुम रोती थी, गाती थी
बस तुम्हारी आवाजें थी ;
किसी को आने की इजाजत ना थी तुम्हारे सिवा
तब की बात और थी |
अब थोड़ी लिबरल सी अर्थ व्यवस्था है
दरवाजे खुले हैं अब
कोई भी ट्रूली मैडली , टिंडर सा
आता जाता रहता है तुम्हारे सिवा ||
दरवाजे खुले हैं अब
कोई भी ट्रूली मैडली , टिंडर सा
आता जाता रहता है तुम्हारे सिवा ||
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