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Showing posts from August, 2015

कितना मासूम मेरा शहर है

फ़िजा की आबरू  से बेखबर है वो अपने ही ख्वाबों का पिंजर है || सारे शहर के चराग जल उठे  वो एक है जो बेअसर है || शहर की दुआओं पे जीता है उसका अपना  क्या ही घर है || इश्क़ ए साजिश से है बीमार उसे चारागरी की क्या फिकर है || शाम हुई ,पंछी घर लौट आये कितना मासूम मेरा शहर है || This nazm illustrates five different elements of society. 1. The sannyasi 2. The marginalized people , who can't afford light 3. Beggars 4. Lovers 5. Complexity of human society , as compared to birds society. Birds still return home by evening , We don't .

The struggle to be backward is the most forward notion

During late 70s , the chief minister of Bihar Karpuri Thakur rose to the podium as the first backward face with such a large momentum and vote base . Thakur broke the logjam of upper caste dominance in politics and arguably is considered the first leader who united the backward vote bank . Though Lalu Prasad did the same in a better and more stable way with a guarantee of longer period sustainability until Nitish Kumar came out with a backward- forward handshake formulae using Advani's Ram mandir wave. However it was Thakur's 1977 ministry in which backwards surpassed forwards in cabinet roles , at least in number. In Thakur's 1977 cabinet 42 % ministers were backwards compared to 29% forwards.  Thakur capitalised the momentum by bringing in the karpuri formulae of reservation. Thakur straight away allocated 26 % of reservation to OBCs in State government Jobs. And this was almost 12 years before V P Singh's OBC reservation in 1990. However Thakur had sense of ec...

History of Monday-phobia & Market

Market faces the third of its type Monday-phobia. In 1929, the first stock market crash was felt in last week of October. Though the prior signal was made by 24th October , Black Monday (October 28) proved to be the antagonist of the wall street.Black Tuesday followed. The crash signaled the beginning of the 10-year Great Depression. In 1987, DJIA dropped by 22 % over the day and so did markets of Hong kong,Europe, US. Black Tuesday followed in Australia and New Zealand. Program trading was one of the lead cause. Today's Black Monday certainly establishes our faith in market's Monday-phobia.

इस कदर भी कोई इश्क़ किया करता है क्या ?

सौ डेढ़ सौ दिन रात की ख्वाईश सौ डेढ़ सौ दिन रात के वादे । बीस बाइस की उम्र सजर पुलिंदा भर के कच्चे चिट्ठे । सर्दी  की लम्बी रातें में सत्ताईश कोस की तन्हाई । टुकड़े भर की बेवफाई पे सदियों भर के बेबस चर्चे । मुट्ठी भर के  टिमटिम  तारे और उम्र भर की रौशनी । धूर भर की ख़ामोशी और कठ्ठे भर गम का बोझ । इस उम्र में इस कदर भी कोई इश्क़ किया करता है क्या ? यूँ सुलझी सी जिंदगी कोई रिस्क किया करता है क्या ? कोस = unit of distance धूर = 6ft * 6ft ( unit of area) कठ्ठे =  20 धूर

गुलज़ार और मैं: तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता

मोमिन ने अपने वक़्त में जब ये शेर दर्ज किया की " तुम मेरे पास होते हो  गोया जब  कोई दूसरा नहीं होता " तो ग़ालिब कह बैठे ; " मोमिन ये एक शेर मुझे दे दो , मेरी पूरी जमीनी ले लो " | अलग अलग दौड़ के मजनुओं ने इस शेर को अलग अलग तरीके से अपनी मेहबूबा के लिए दोहराया है | मैं आज गुलज़ार के लिए दोहराता हूँ | मुक्त दो चार लफ़्ज़ों में  एक पूरी जिंदगी समेट लेने की हैसियत रखनेवाले गुलज़ार जाने अनजाने हमारे और आपके पास हर उस लम्हे में होते हैं जब कोई दूसरा नहीं होता | कभी कोई आपके कंधे पे हलके हथेलियों से मारता है , पूछता है " माचिस है ? , तो आप अनायास कह जाते हैं " मैं सिगरेट तो नहीं पीता  मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ   "माचिस है?"  बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूँ |" यूँ ही कभी कोई आश्ना , आपसे पूछ बैठे जो "क्या भेजोगे इस बरस ? " तो भींगा सा एक ख्याल आता है " गुलों को सुनना जरा तुम सदायें भेजी हैं / गुलों के हाथ बहुत सी दुआएं भेजी हैं तुम्हारी खुश्क सी आँखें भली नहीं लगती / वो सारी यादें जो तुमको रुलायें भेजी हैं ...

आर्किटेक्चर *

*  For Sarang and Anshul हर एक क्लिक से बनते बिगड़ते शीशे के कुछ तहखाने सारील के कुछ दरवाजे वो खींच रहा है गोल चौकोर परिधियों में जब्त अरमानों की शोख अदाएं | कल्पना का  एक समंदर उम्मीदों की कुछ बुनियादें वो खींच रहा है छोटे बड़े व्यास के ईर्द गिर्द चंद आरी तिरछी रेखाएं | सारील : A type of wood परिधियों : Perimeter बुनियादें : Base of building व्यास : Diameter रेखाएं : Lines  

डोर

बड़ी सिद्धत से दोनों ने जो अर्सों पहले बाँधा था | आज बड़ी मस्सकत से वही एक डोर खोल रहे हैं | दो चार गिरह   खोलते खोलते एहसास होता है : कितना मुश्किल है फलसफों से मुँह फेरना पुराने तरंगों को छेड़ना ; कितना मुश्किल है तन्हा रातों को मापना ; तारों की बस्ती को अब्र ए कफ़न से ढाँपना । कितना मुश्किल है उन कच्चे कोयलों  पे नाचना जिसे सदियों के सूरज ने शोला बना दिया है ॥ चलो फिर क्यूँ  ना इन दो चार खुले गिरहों   को एक बार फिर से बांधते हैं ? गर ये आग का दरिया है तो आग का दरिया फांदते हैं ॥

The Dilemma of Placement semester & कर्मण्ये वाधिकारस्ते म फलेषु कदाचना

I sometimes wonder what drives people to keep walking in a dark street with no vision or certainty to reach the concerned landmark. Are we addicted to struggle ? If you give me a book and say read it, someone will ask you questions from here after 10 days and if answered correctly , you get this Chhotu munch , I assure you I will read it . But before reading I will make sure that the concerned someone will ask me questions and that too from this book only . And then I will read it , why read? I will taste it , I will chew it , I will mug it down . I will read between the line and beyond the paragraph , to an extent that I can even explain the mark of punctuation . Its not for the Chhotu munch, Chhotu munch is just a metaphor, may be because this is the only chocolate which is not so sweet and I know. But the whole story is about the action and the fruit map. So I wonder when I hear people saying prepare for placement. Preparing for placement is more about philosophy , it is so muc...

Not every one

Not every one  should be the participant.For every generation there should be some elites who are just observing and recording the tape.Your generation deserves one observer, else who will write your history, what will your kids and kids of your kids read ?  An observer's life is different, he can't participate, he should not participate, don't ask him to participate . He is listening, recording your smiles and tears when you were hanging over drugs and alcohol, success and ego and sometimes failures or lost love. Make sure you have one such kid in your proximity if you want your performance get recorded.

लाइटर

मैं सिगरेट  तो नहीं  पीता खैर इत्तेफ़ाक़  से लाइटर रखता  हूँ | वो एक लाइटर जो  कोई मेरे टेबल पे छोड़  गया था ; सबो - रात  साथ साथ चलता है | जाने अनजाने किसी चौराहे माचिस की कश्मकश  में भटकते दो एक आवारे मिल जाते हैं, मैं लाइटर बढ़ा देता हूँ | बड़ा सुकून है इसमें किसी को बेपनाह जलते देखना और फिर चुप चाप निकल जाना ,  नए हमनवा  की तलाश में || शायद लाइटर के साथ साथ कोई एक नैतिक जिम्मेदारी छोड़ गया है इसे जलाते रहने का इसे जंग से बचाने का | काफी  कुछ पेट्रोलियम कैद है उन्मुक्ति की उम्मीद लिए ; क्या पता ऐसे ही मिट जाए धरा का अँधेरा इन नन्हीं नन्हीं चिंगड़ियों से ||