फ़िजा की आबरू से बेखबर है वो अपने ही ख्वाबों का पिंजर है || सारे शहर के चराग जल उठे वो एक है जो बेअसर है || शहर की दुआओं पे जीता है उसका अपना क्या ही घर है || इश्क़ ए साजिश से है बीमार उसे चारागरी की क्या फिकर है || शाम हुई ,पंछी घर लौट आये कितना मासूम मेरा शहर है || This nazm illustrates five different elements of society. 1. The sannyasi 2. The marginalized people , who can't afford light 3. Beggars 4. Lovers 5. Complexity of human society , as compared to birds society. Birds still return home by evening , We don't .
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |