रुको ,ठहरो जरा जरा दम तो लो | गेस्ट हाउस का जो गार्ड है ; कभी उसके सिरहाने की आधी टूटी कुर्सी पे बैठा करो | मचलते हवाओं का रुख महसूस करो ; वो सामने हाईवे पे दौड़ती जो जिंदगी है ; कभी ठहाके लगा के हंसो उनपे | वो भी तो सुनें उनके लाचारी की कारस्तानियां , कितनी दूर पहुँच गयी है | रुको ,ठहरो जरा जरा दम तो लो | दो एक खींचती साँसों का एहसास तो करो ; अर्सों से किसी ने इनकी सुध नहीं ली है एक चाय तक नहीं पूछा | सुना है : तुम्हारी एक नन्ही सी बेटी है महीने भर से मिले नहीं तुम सुना है सोते जागते तुम्हारा नाम लेती है | तुम्ही ने बताया था पिछली रात बियर पीते पीते जब चिली और ब्राज़ील १-१ पे अटके थे | और ये एक बात शायद तुम्हें एहसास नहीं : तुमने तीसरी बार दुहराया है "मैं जब घर पे रहता हूँ ना अनुपम सिगरेट की जरुरत ही नहीं पड़ती || " रुको ,ठहरो जरा जरा दम तो लो |
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |