ANUPAM KUMAR{sanskrit}
मुझे बड़ा सटीक लगता है जब कोई कहता
है
इकोनॉमिक्स की बात करनी हो तो अंग्रेजी में करो ,पॉलिटिक्स की बात करनी हो तो हिंदी में करो , और मुहब्बत की बात करनी हो तो उर्दू में करो |ये बात तो मुझे तब समझ में आई जब मैंने मुरादाबादी का वो शेर पढ़ा :
हमारे प्यार की चिठी तुम्हारे बाप ने खोली
/हमारा सर ना बच पाता ,गर उसे उर्दू आ जाती |
खैर आज मेरे चर्चा का विषय हिंदी ,अंग्रजी ये उर्दू नहीं |
आज मेरे चर्चा का विषय है संस्कृत |
मैं मानता हूँ थोड़ी हैरानी
होती है की ये उर्दवी अंदाज , हिन्दवी लफ्ज़ और अंग्रेजी लिबास में खड़ा सख्स संस्कृत क्या समझाएगा ?
परन्तु क्या करें मजबूरी है |
मेरे कंप्यूटर साइंस के कुछ मित्र यहाँ बैठे हैं , वो शायद इस बात से वाकिफ होंगे की दुनियां में टॉकिंग कंप्यूटर बनाने की बात चली : प्रश्न उठा की कौन सी भाषा चुनी जाए |चुकी
कंप्यूटर का कोई विवेक नहीं होता अतएव भाषा व्याकरण और ध्वनि दोनो की दृष्टि से वैज्ञानिक होनी चाहिए |
आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ की तमाम भाषाओं की समीक्षा के बाद संस्कृत को सबसे उपयुक्त माना गया|
अब देखिये अंग्रेजी में
no भी नो होता है और know भी नो होता है , कहीं टी साइलेंट है तो कहीं पी साइलेंट है ...लिखते हैं एन्त्रेप्रेनुरे और बोलते हैं अन्त्रेप्रेनुरे |
किन्तु संस्कृत में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है| और ये केवल ध्वनि की बात नहीं है |
संस्कृत
में शब्दों का इतना अपार भण्डार है मित्रों की रचनाकार अपने व्यक्तित्व के हिसाब से लफ्ज़ ढूंढ लेता है |
रामायण में एके प्रसंग आता है
की भगवान् राम लंकेश पर विजय प्राप्त करने निकलते हैं तो भगवान् शंकर की आराधना करते हैं
"नमामीश मीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवॆद स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चदाकाश माकाशवासं भजॆहम् ॥
उसी वक़्त रावण ने भी एक
स्वरचित स्तुति की
"डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः
शिवम
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
अब एक पांच साल का बच्चा भी बता देगा की ये "डमड्डमड्डमड्डम तो रावन ने ही किया होगा और "नमामीश मीशान" राम ने |क्यूंकि ये सब्द जो है रावण के व्यक्तित्व पर जाते हैं |
ये है संस्कृत की वैज्ञानिकता ||
लेकिन लोग
आज कहते हैं की संस्कृत बोलचाल की भाषा नहीं है ...संस्कृत कभी जन भाषा नहीं रही है |
ये तो एक समुदाय भर की भाषा है
ब्राह्मणों की भाषा है ;
व्रत और अनुष्ठानों की /जलते
सम्शानों की / भटकते यजमानों की /वेदों और पुराणों की भाषा
है |
परन्तु मैं इस बात से सहमत नहीं .......
संस्कृत
जन भाषा रही है |
एक लकड़हारे
से
राजा भोज पूछते हैं " किम ते भारं बाधती ?" क्या तुम्हें भार कष्ट दे रहा है
और लकडहारा कहता है " भारं ना बाधती राजन यथा बाधती बाधते " अर्थात ये राजन मुझे ये लकड़ी
का गठ्ठर
उतना कष्ट नहीं दे रहा जितना की आपके मुख से निकला बाधती शब्द कष्ट दे रहा है ..क्यूंकि ये शब्द बाधते होना चाहिए बाधती नहीं |
तो कौन कहता है ये जन भाषा नहीं रही है ? छोटे लोग ,अनपढ़ लोग ,लकडहारे तक संस्कृत बोलते आये हैं |
परन्तु आज हम सब पर एक जिम्मेदारी आई है |की हम इस भाषा की पुनः
जीवित करें |ये इस भाषा की सोच है : उदार चरिता नाम तु बसुधा एव कुटुम्बकम |
एक संस्कृत बोलने वाला पुरे विश्व को परिवार मानता
है ....और एक अंग्रेजी बोलने वाला विश्व को
बाजार मानता है ..और परिवार में प्यार
होता है मित्रों ...बाजार में ब्यापार होता है |
आज मैं गुजारिश करता हूँ की संस्कृत को पुनः जीवित किया जाए | ताकि कल जब टॉकिंग कंप्यूटर की बात हो तो एके बिडम्बना ना खड़ी हो जाए की जिसे कंप्यूटर साइंस आता है उसे संस्कृत नहीं और जिसे संस्कृत आता है उसे कंप्यूटर साइंस नहीं |
||धन्यवाद ||
n.b. script has been adapted from the concerned blogs on sanskrit , Rajiv dixit's speech on sanskrit , Hullar Muradabadi fan blog , Smt sushma swaraj's speech during one southern award ceremony .
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