मैंने सोचा था
जिस दिन मुझे ये एहसास हो जाएगा
की मेरी रोटी पक्की है,
मेरी तनख्वाह पक्की है,
उस दिन मैं भर दूंगा सारा उधार
जो मैंने नज़्मों से ले रखा है
उस दिन मैं पूरा कर दूंगा
वो सारी फरमाइशें
जो नज़्मों ने मुझसे की थी
और मैंने आँखें बंद करके हामी भर दी थी
वो सारे वायदे, वो सारी कवायदें
जो मैंने नज़्मों के माथे पे हाथ रख कर की थी |
फिर एक दिन
मेरी रोटी पक्की हो गयी
मेरी तनख्वाह पक्की हो गयी
उस दिन मुझे एहसास हुआ
लफ़्ज़ों के क़र्ज़
रोटी और तनख्वाह से भरे नहीं जा सकते |
मैं सिगरेट तो नहीं पीता खैर इत्तेफ़ाक़ से लाइटर रखता हूँ | वो एक लाइटर जो कोई मेरे टेबल पे छोड़ गया था ; सबो - रात साथ साथ चलता है | जाने अनजाने किसी चौराहे माचिस की कश्मकश में भटकते दो एक आवारे मिल जाते हैं, मैं लाइटर बढ़ा देता हूँ | बड़ा सुकून है इसमें किसी को बेपनाह जलते देखना और फिर चुप चाप निकल जाना , नए हमनवा की तलाश में || शायद लाइटर के साथ साथ कोई एक नैतिक जिम्मेदारी छोड़ गया है इसे जलाते रहने का इसे जंग से बचाने का | काफी कुछ पेट्रोलियम कैद है उन्मुक्ति की उम्मीद लिए ; क्या पता ऐसे ही मिट जाए धरा का अँधेरा इन नन्हीं नन्हीं चिंगड़ियों से ||
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