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Showing posts from December, 2015

क्रॉस वर्ड 1, 2 & 3

क्रॉस वर्ड 1  इस शहर के सड़कों पे चलते चलते ना जाने कितनी नज़्मों की करतूतें बुने हैं हमने ; बाँकी शहरों से अलग थलग है ये बाँकी शहरों में जाता हूँ तो बार रेस्टोरेंट मॉल घूमता हूँ इस शहर जब भी आता हूँ क्रॉस वर्ड जरूर जाता हूँ | ये पब की करिश्माओं का शहर नहीं ये लफ़्ज़ों की रूमानी का शहर है | ये मेरा शहर नहीं है | ये मेरे रोमांस का शहर है | क्रॉस वर्ड 2 मैंने बड़े ही अदबी जबान में लगभग हमउम्र से सख्स से पूछा " सर, हिंदी सेक्शन किधर है ? " "उधर देखिये " चेतन भगत और मेलुआह का  अनूदित जखीरा घुटने तक आ रहा था | कोई हाफ गर्लफ्रेंड छाती तक आ रही थी और बेचारा मैला आँचल दबा कुचला सा पड़ा था नन्हे कोने में || मैंने फिर पूछा " सर हिंदी काव्य सेक्शन किधर है ?" वो मुस्कराया कुछ बोला नहीं | और फिर थोड़ा ठहर के बोला " हिंदी काव्य का क्रॉस वर्ड यहाँ नहीं है |" गर ये मेरे रोमांस का शहर नहीं होता तो मैं उसे जरूर बताता हिंदी काव्य का क्रॉस वर्ड कहाँ है ? क्रॉस वर्ड 3 इतना तो तय है हिंदी काव्य इतनी भी कमसीन नहीं जो सिलवटों...

An encounter to remember and Postscript notes

Today is december 9th, Some of my good friends whom I count in the genius most list are yet to be placed, some are yet to be shortlisted, some's hard work is yet to be recognized. Since last six days I am strolling across the open grounds of Nalanda complex, waiting for people to convert, come back home, dewrap themselves from those courteous suits that tests our patience, perseverance, pretensions and priorities. It's all about a day, a click of destiny. I got the yes nod on 3rd December night, though it took mornings to reach up to me. Interview through which I got an offer was simple, straightforward, Not a big deal type, just two or three maths problems and some talks. The interviewer was young enough to realize the substance I am, yet old enough to realize the confidence in my eyes. Interviews that select you are generally like this, simple and smooth , but the one that rejects you are actually charming, to be talked about. And that rejected one was with Ernst and Young...

December Diary

नन्हें नन्हें पलकों से पनपे नन्हें नन्हें ख्वाबों में हंसी बड़ी खिल कर आती है हलके गहरे पश्मीने में | जितना तुम में हम गुजरे हैं उतना हममें तुम ठहरी हो जितना हँसे हैं उतना रोये हैं हम अबके महीने में | एक कश्मकश सी है आँखों में एक उलझन सा खींचता है सीने में बड़ी सयानी पहेली है तुम संग मरने जीने  में |