नीरा
कभी कभी तुम क्षितिज सी लगती हो |
दूर कहीं आसमां से उतर कर
जमीं को चूमती ;
दूर कहीं सर्द वादियों में खामोश दौड़ती ||
इस कभी कभी के दौड़ में , नीरा
जब भी वक़्त मिलता है
मेरी आँखें आसमां टटोलती हैं;
और जब जब तारे टूटते हैं ,
हर एक टूटे तारों के पीछे पीछे दौड़ता हूँ |
इस कभी कभी के दौड़ में , नीरा
जेहन में एक क्रांति उठती हैं
हर उस लम्हे से लड़ जाऊँ
जिसका अंत निश्चित हैं ;
जिसके सत्य पे कोई शक नहीं |
हर उस लम्हे से लड़ जाऊँ
जो कुछ कुछ तुम जैसा हैं ||
इस कभी कभी के दौड़ में , नीरा
इतनी सी ख्वाईश लेकर जीता हूँ :
जन्नत के चिराग को तेरी हथेलियों पे रख जाऊँ ;
और उस रौशनी को चूमता रहूँ
जो तेरी जुबाँ को रंगते जा रहे हैं ||
Acclaimed for his novel Sei somay (those days) , Sunil Gangopadhyay remains the heart and soul of bengali literal history .However very less has been talked about the poetry of this sahitya academy award winning bengali maestro . The character Neera derives its inspiration from his work Ephemeral.
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