काफी देर तक
चाँद और बादल में
अंगराइयों का खेल चलता रहा |
आसमान का वो टुकड़ा ,
कब फलक से उतर कर बाज़ार तक पहुँच गया , पता नहीं ?
मैंने रात का लम्हा लम्हा खर्च कर दिया
चाँद को माचिस से जलाने में |
मुमकिन नहीं था ||
कुछ रिश्ते तय नहीं हो पाते हैं ;
वक़्त उन्हें लफ्ज़ नहीं दे पाता
हम उन्हें जुबान नहीं दे पाते हैं ;
कुछ रिश्ते तय नहीं हो पाते हैं ;
लिपटकर रह जाते हैं रूह के तह तक
जैसे अर्सों से बिखरे चादर को ,
किसी ने फोल्ड कर ,रख दिया हो
बेनजीर याददाश्त के बंद बक्से में |
शायद आप और हम भी फलक के एक टुकड़े हैं |
अंगड़ाइयां का सिलसिला चलता रहेगा ;
खैर
चाँद अपने इश्क़ से बाज नहीं आएगा;
और बादल अपनी आवारगी से ................
हर रिश्ते का एक नाम हो ,जरुरी तो नहीं !!
चाँद और बादल में
अंगराइयों का खेल चलता रहा |
आसमान का वो टुकड़ा ,
कब फलक से उतर कर बाज़ार तक पहुँच गया , पता नहीं ?
मैंने रात का लम्हा लम्हा खर्च कर दिया
चाँद को माचिस से जलाने में |
मुमकिन नहीं था ||
कुछ रिश्ते तय नहीं हो पाते हैं ;
वक़्त उन्हें लफ्ज़ नहीं दे पाता
हम उन्हें जुबान नहीं दे पाते हैं ;
कुछ रिश्ते तय नहीं हो पाते हैं ;
लिपटकर रह जाते हैं रूह के तह तक
जैसे अर्सों से बिखरे चादर को ,
किसी ने फोल्ड कर ,रख दिया हो
बेनजीर याददाश्त के बंद बक्से में |
शायद आप और हम भी फलक के एक टुकड़े हैं |
अंगड़ाइयां का सिलसिला चलता रहेगा ;
खैर
चाँद अपने इश्क़ से बाज नहीं आएगा;
और बादल अपनी आवारगी से ................
हर रिश्ते का एक नाम हो ,जरुरी तो नहीं !!
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