सफ़र में इश्क़ घोलने के वास्ते
इन लोगों ने अंत्याक्षरी का दौड़ सुरु कर दिया |
वो सारे बेकार गाने
जिन्हें हम "क्लास लेस " कह के
ठुकरा दिया करते हैं पर्दों पे ;
इनके मायने आज बदले बदले से लगने लगे थे
जैसे किसी ने खूबसूरती का एक लेयर चढ़ा दिया हो ,
हर एक लफ्ज़ पे , हर एक लम्हों पे ||
मैं अपनी गोद में गुलज़ार को संभाले संभाले
कभी इन्हें देखता रहा , कभी दौड़ती बसों को |
एक दो गाने मैंने भी सजेस्ट कर दिए;
खैर
अच्छी लगी इनकी बेफिक्री ,
होनी चाहिए ||
दौड़ती बसों का भी एक अपना सुरूर था
एक साजिश सी लगती है ,
सियासत में रवादारी का इनपुट लाया जा रहा हो जैसे ;
कभी वो आगे हो जाते थे
चीखते थे , चिल्लाते थे ;
कभी हम आगे हो जाते थे
चीखते थे , चिल्लाते थे ;
उनकी चीख बैरीटोन सी लगती थी
हमारी चीख एक मिली जुली श्रील सी लगती थी
लड़कियां ज्यादा थी हमारे बसों में , शायद इसलिए ||
और भी बहुत कुछ जो छोटे छोटे लम्हों में
बिखरे रहे बस की सीटों पर ;
खैर वर्मा जी की ख़ामोशी में सारे दफ़न होते चले गए |
अब हम उन्हें क्या समझाएं
हम उनसे कितना मुहब्बत करते हैं !!
सफर को जीते जीते
कुछ स्कूली पन्ने परत दर परत खुलने लगे थे |
आज कल कहाँ मिलते हैं ऐसे लम्हें;
मैंने दो चार चुरा के रख लिए हैं जेब में ;
दो चार कैद कर लिए हैं मेगा पिक्सल्स में ;
वक़्त को ठहराने की कोशिश जारी है ||
इन लोगों ने अंत्याक्षरी का दौड़ सुरु कर दिया |
वो सारे बेकार गाने
जिन्हें हम "क्लास लेस " कह के
ठुकरा दिया करते हैं पर्दों पे ;
इनके मायने आज बदले बदले से लगने लगे थे
जैसे किसी ने खूबसूरती का एक लेयर चढ़ा दिया हो ,
हर एक लफ्ज़ पे , हर एक लम्हों पे ||
मैं अपनी गोद में गुलज़ार को संभाले संभाले
कभी इन्हें देखता रहा , कभी दौड़ती बसों को |
एक दो गाने मैंने भी सजेस्ट कर दिए;
खैर
अच्छी लगी इनकी बेफिक्री ,
होनी चाहिए ||
दौड़ती बसों का भी एक अपना सुरूर था
एक साजिश सी लगती है ,
सियासत में रवादारी का इनपुट लाया जा रहा हो जैसे ;
कभी वो आगे हो जाते थे
चीखते थे , चिल्लाते थे ;
कभी हम आगे हो जाते थे
चीखते थे , चिल्लाते थे ;
उनकी चीख बैरीटोन सी लगती थी
हमारी चीख एक मिली जुली श्रील सी लगती थी
लड़कियां ज्यादा थी हमारे बसों में , शायद इसलिए ||
और भी बहुत कुछ जो छोटे छोटे लम्हों में
बिखरे रहे बस की सीटों पर ;
खैर वर्मा जी की ख़ामोशी में सारे दफ़न होते चले गए |
अब हम उन्हें क्या समझाएं
हम उनसे कितना मुहब्बत करते हैं !!
सफर को जीते जीते
कुछ स्कूली पन्ने परत दर परत खुलने लगे थे |
आज कल कहाँ मिलते हैं ऐसे लम्हें;
मैंने दो चार चुरा के रख लिए हैं जेब में ;
दो चार कैद कर लिए हैं मेगा पिक्सल्स में ;
वक़्त को ठहराने की कोशिश जारी है ||
Wastav ke isi lamhon ko shayad hum dohrana chahte hai magar jeevan ki raftar mein bas yeh lamhe hi reh jatein hai...Amar rehte hai to bas woh hasin ki leher, beefikri ki naav mein jaise chalte hi jain...!
ReplyDeleteShayad main bhi isi daur se gujar chuka hun, is befikri ke shore mein mann chanchal tha ki main bhi shamil ho jaun, magar fir muje ehsaas hua ki, yeh daur shamil hone ka nahi balki, shamil karna ka hai...!