कुछ कुछ भूलता जा रहा हूँ
कुछ पुराने चेहरों को |
जिंदगी इस कदर दौड़ रही है पटरियों पर
पुराने एहसास के सारे धागे टूटते जा रहे हैं |
कितने स्टेशन छूट गए ,पता नहीं !
कितने स्टेशन आने को हैं , पता नहीं !
नसों में दौड़ती जा रही है ,
एक सिलती लहर कसमकस की ;
इस रात चाँद और हम-तुम में
कब तक जीता रहूँगा मैं ?
कुछ पुराने चेहरों को |
जिंदगी इस कदर दौड़ रही है पटरियों पर
पुराने एहसास के सारे धागे टूटते जा रहे हैं |
कितने स्टेशन छूट गए ,पता नहीं !
कितने स्टेशन आने को हैं , पता नहीं !
नसों में दौड़ती जा रही है ,
एक सिलती लहर कसमकस की ;
इस रात चाँद और हम-तुम में
कब तक जीता रहूँगा मैं ?
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