Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2014

आप और हम

काफी देर तक चाँद और बादल में  अंगराइयों का खेल चलता रहा | आसमान का वो टुकड़ा , कब फलक से उतर कर बाज़ार तक पहुँच गया , पता नहीं ? मैंने रात का लम्हा लम्हा खर्च कर दिया  चाँद को माचिस से जलाने में | मुमकिन नहीं था || कुछ रिश्ते तय नहीं हो पाते हैं ; वक़्त उन्हें लफ्ज़ नहीं दे पाता हम उन्हें जुबान नहीं दे पाते हैं ; कुछ रिश्ते तय नहीं हो पाते हैं ; लिपटकर रह जाते हैं रूह के तह तक जैसे अर्सों से बिखरे चादर को , किसी ने फोल्ड कर ,रख दिया हो  बेनजीर याददाश्त के बंद बक्से में | शायद आप  और  हम  भी फलक के एक टुकड़े हैं | अंगड़ाइयां का सिलसिला चलता रहेगा ; खैर चाँद अपने इश्क़ से बाज नहीं आएगा;  और बादल अपनी आवारगी से ................ हर रिश्ते  का   एक नाम हो ,जरुरी तो नहीं !!

कुछ कुछ भूलता जा रहा हूँ

कुछ कुछ भूलता जा रहा हूँ  कुछ पुराने चेहरों को | जिंदगी इस कदर दौड़ रही है पटरियों पर  पुराने एहसास के सारे धागे टूटते जा रहे हैं | कितने स्टेशन छूट गए ,पता नहीं ! कितने स्टेशन आने को हैं , पता नहीं ! नसों में दौड़ती जा रही है ,  एक सिलती लहर कसमकस की ; इस रात चाँद और हम-तुम में  कब तक जीता रहूँगा मैं ?

Farewell night poetry : an attempted tribute to graduating seniors

वो जाते जाते वादियों को चूमता जा रहा था | वो सारी फिजूल सांसें जो उसने कल तक खर्च किये थे ; आज रात उसका हिसाब हो जायेगा || कुछ बुनियादी -बेबुनियादी रिश्ते  जो लोगों ने उसके दीवार पर टांग दिए थे  अब उनका क्या होगा ? वो शायद ना रहे | एक नया दौड़ आएगा , नए पेंट चढ़ जाएंगे || शेल्फ के एक कोने में  जो सारे कैश मेमो पड़े  थे ; सीसीडी, park , flavours , शिवानी  हर पल एक नयी कहानी | अब इनका क्या होगा ? ये शायद अब ना रहे || खैर  packed  बैग के साथ  यादों  के भी तो कुछ कच्चे चिठ्ठे जाएंगे , कुछ अल्फ़ाज़ जो कभी भुलाये ,भूले ना जा सके;  कुछ "रिग्रेट्स" जो मिटाये मिट ना सके ; कुछ मुहब्बत , जो कभी मुहब्बत बन ना सके ; ये सारे साथ जाएंगे | और जब कभी यही बसंत लौटेगा;  जवाँ पे पुराना जायका लौटेगा ; यादों का एक हूक दिल के दरवाजे को दस्तक देगा  शायद...शायद...शायद...  किसी मोड़  पे फिर मिलेंगे ...........................................................

थोड़ी शरारत, थोड़ी रवादारी और वर्मा जी ...

सफ़र में इश्क़ घोलने के वास्ते  इन लोगों ने अंत्याक्षरी का दौड़ सुरु कर दिया | वो सारे बेकार गाने  जिन्हें हम  "क्लास लेस " कह के  ठुकरा दिया करते हैं पर्दों पे ; इनके  मायने आज बदले बदले से लगने लगे थे  जैसे किसी ने खूबसूरती का एक लेयर चढ़ा दिया हो , हर एक लफ्ज़ पे , हर एक लम्हों  पे || मैं अपनी गोद  में गुलज़ार को संभाले संभाले  कभी  इन्हें  देखता रहा , कभी दौड़ती बसों को | एक  दो गाने मैंने भी सजेस्ट  कर दिए; खैर  अच्छी लगी इनकी बेफिक्री ,  होनी चाहिए  || दौड़ती बसों का भी एक अपना सुरूर  था  एक साजिश सी लगती है ,  सियासत में रवादारी का इनपुट लाया  जा रहा हो जैसे ; कभी वो आगे हो जाते थे  चीखते थे , चिल्लाते थे ; कभी हम आगे हो जाते थे  चीखते थे , चिल्लाते थे ; उनकी चीख बैरीटोन सी लगती थी  हमारी चीख एक मिली जुली श्रील सी लगती थी  लड़कियां ज्यादा थी हमारे बसों में , शायद इसलिए || और भी बहुत कुछ जो छोटे छोटे लम्हों में  बिखरे रहे बस की सीटों पर ; ...