Okey the climax poetry that I narrated tonight for the Drama : JAHRILI HAWA .
While writing this poetry I drew inspiration from one writer who lost his son in bhopal tragedy on 3rd dec 1984.
कोई वक़्त को
मुठ्ठी में भींच कर ;पूछे तो सही
आदि क्या है? अंत क्या है ?
इस जहरीली हवा का |
मैंने टूटते बिखरते गलियों में
अश्कों का सैलाब देखा है |
[क्या कभी मौत ने ऐसा लिबास पहना था ?
भींगी पलकों ने कभी ऐसी सदी देखी है ?
तुमने देखी होगी फकत गंगा यमुना की धारा
मैंने भोपाल में लाशों की नदी देखी है ||]**
डूबते पलकों ने अश्कों को पिघलते देखा है
मैंने मौत को नंगे पाऊँ चलते देखा है |
अब ये खतरा है
तल्खियों का मजमा लगेगा ; लाशों की हेरा फेरी होगी ;
ये तुम्हारा दर्द है ; या ख़ामोशी का एक टुकड़ा
कारख़ानों की नाजायज पैदाइश
या मेरी - तुम्हारी मिली जुली साजिश||
मैंने वक़्त को मुठ्ठी में भींच के पूछा है
आदि क्या है? अंत क्या है ?
इस जहरीली हवा का |
** This part of poem is taken from a daily newspaper published from Indore.
While writing this poetry I drew inspiration from one writer who lost his son in bhopal tragedy on 3rd dec 1984.
कोई वक़्त को
मुठ्ठी में भींच कर ;पूछे तो सही
आदि क्या है? अंत क्या है ?
इस जहरीली हवा का |
मैंने टूटते बिखरते गलियों में
अश्कों का सैलाब देखा है |
[क्या कभी मौत ने ऐसा लिबास पहना था ?
भींगी पलकों ने कभी ऐसी सदी देखी है ?
तुमने देखी होगी फकत गंगा यमुना की धारा
मैंने भोपाल में लाशों की नदी देखी है ||]**
डूबते पलकों ने अश्कों को पिघलते देखा है
मैंने मौत को नंगे पाऊँ चलते देखा है |
अब ये खतरा है
तल्खियों का मजमा लगेगा ; लाशों की हेरा फेरी होगी ;
ये तुम्हारा दर्द है ; या ख़ामोशी का एक टुकड़ा
कारख़ानों की नाजायज पैदाइश
या मेरी - तुम्हारी मिली जुली साजिश||
मैंने वक़्त को मुठ्ठी में भींच के पूछा है
आदि क्या है? अंत क्या है ?
इस जहरीली हवा का |
** This part of poem is taken from a daily newspaper published from Indore.
Beautiful .......respect
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