वो भी एक दौड़ था ।
नींद में सपने देखा करता था।
खिड़कियों के ग्रिल से
चाँद ढूंढ़ता था।
तसब्बुर का एक जाल बिछाता था;
आसमां के कबूतरों को जमीं पड़ बुलाता था।
हकीकतों में मरता था;
ख्यालों में जीता था।
इश्क में शायरी हुआ करती थी ;
डूबे डूबे से लफ़्ज़ों में वो कहती थी
"मेरे ख्वाबों के हमसफ़र
कभी तो आया करो मेरे शहर ।
तुमसे बातें करते करते
मैंने सारे तारे गिन लिये हैं।"
................
वो भी एक दौड़ था
नींद में सपने देखा करता था।
आज हकीकत सपने जैसे हो गये हैं।
नींद आती नहीं;
सपनों का तो सवाल ही नहीं उठता ।
नींद में सपने देखा करता था।
खिड़कियों के ग्रिल से
चाँद ढूंढ़ता था।
तसब्बुर का एक जाल बिछाता था;
आसमां के कबूतरों को जमीं पड़ बुलाता था।
हकीकतों में मरता था;
ख्यालों में जीता था।
इश्क में शायरी हुआ करती थी ;
डूबे डूबे से लफ़्ज़ों में वो कहती थी
"मेरे ख्वाबों के हमसफ़र
कभी तो आया करो मेरे शहर ।
तुमसे बातें करते करते
मैंने सारे तारे गिन लिये हैं।"
................
वो भी एक दौड़ था
नींद में सपने देखा करता था।
आज हकीकत सपने जैसे हो गये हैं।
नींद आती नहीं;
सपनों का तो सवाल ही नहीं उठता ।
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