शाम
और क्षितिज को चूमती रश्मि की दसविदानिया;
झरोखों से नज़र आती सम्मा की लौ ,
तेरी आँखें
और आँखों में उतरती चंद इश्क की लकीरें ,
मेरी नज़रें
और नज़रों में उतरती तेरी अनकही तस्वीरें ;
कुछ मासूम से सवालात ,
इत्तेफाक ए मुलाकात,
और मौसम ए ख़यालात .......
.....................
मैं सोचता हूँ कभी कभी ....
नज़रों के दायरे न होते
तो क्या बात होती ;
जो हम इक बार चाँद देखते
और नज़रें चाँद पे मिलती
तो क्या बात होती ,
जो तुम्हारी वादियों में
बारिसों का कोई मंजर आता ,
जो तुम्हारी खिड़कियों पे
खामोशियों का कोई पहर आता ,
और ऐसे हालत में
हमारी मुलाक़ात होती ,
तो क्या बात होती ;
जो हम किसी मोड़ पर
अचानक से बेवजह मिलते ,
बातों ही बातों में जो रात होती
तो क्या बात होती ,
मैं सोचता हूँ कभी कभी ....
नज़रों के दायरे न होते
तो क्या बात होती ||
..................
Incomplete yet loving it
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