शाम
और साज़े-सामान से सजे
पेचीद सड़कों की हरकतें ;
बस्तों को कांधे से बाँधे
सिलसिला -ऐ -हसरतें ;
क्षितिज को चूमती सुर्ख रौशनी
गुजरती तातों से झांकती जिंदगी
और इम्तेहां लेती दो चार आँखें,
गुजरती गलियों से गुजरती हुई
महबूब की गुजरती यादें ,
प्लास्टिक टेबल के इर्द गिर्द बिखरे हुए
दो चार वक़्त से बेख़ौफ़ कारिन्दे ,
सात रुपये की चाय और सत्ताइश बातें ,
और लम्हे...............
बेइंतहा औपचारिक मुहब्बत से सजे हुए;
जीने को और क्या चाहिए ||
मार्च की दुपहरी
और मेरे संग चल रहे मेरे साए ,
वही दो चार गिने चुने चेहरे
वही पुरानी बातें और आशिकी के चर्चे ,
कॉफ़ी डे के टेबलों पे आसाम की चाय
हर मुद्दे पे मेरी नजरिया वाली राय ,
पास के टेबलों पे लहराते सरीफ दुपट्टे
अश्कों में उभरते
गुजरे वक्त के दुपट्टों के रंग ,
और खुद को टटोलती
जिंदगी के बचे खुचे हाशिये ;
जीने को और क्या चाहिए ||
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