जर्द खामोशियों से पटी रात वही पुराने शिकवे - सवालात , और किसी जेल के माफिक खड़े इस अट्टालिका पे दुधिया रौशनी में चमकता एक गुरुर , लॉन में लेटे हुए छोटे छोटे दूब के पत्ते और उन्हें चूमती चंचल हवाओं की कशिश , फलक पे बुत की तरह बैठा चाँद और बादलों के कुछ बेसॊज नापाक इरादे , पीछे के ब्लाक से छन छन के आ रही हारमोनियम की किलकारियाँ , मेरे इर्द गिर्द के सन्नाटे और जोर पकड़ती सेमेस्टर की तैयारियाँ, और इन सब के बीच मेरी तन्हाई , जो इस उधेरबुन में बैठी है की मेरे सपनों को बुनने का अधिकार तुझे किसने दे दिया है ?
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |