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बात उतनी भी पुरानी नहीं है |















बात उतनी भी  पुरानी नहीं है |
हालत इस कदर उठे ,
की खूं टपक पड़े ,
आँखों में अब और पानी नहीं है ;
खूं से रंगा है शहर ,आसमां
फलक उतना भी  आसमानी नहीं है |
बात उतनी भी पुरानी नहीं है ||

आज आँचल की
बाजार में जो कीमत उठी है ;
लोथड़े जो चिथड़ो से ढके पड़े  हैं;
हँस क्यूँ रहे हो नादानी नहीं है|

बात उतनी भी पुरानी नहीं है ||

किस चौराहे पे 
कल तक 
कितनी लास गिरी थी ;
गिनती किसे मुह्जवानी नहीं है?
आँखों पे पट्टे,हाथों में तराजू 
कह क्यूँ न देते 
"बेमानी नहीं  है |"
बात उतनी भी  पुरानी नहीं है ||

बड़े शौक से उसने 
बाँधा था रेशम ,
सर्द हाथों पे अब कोई निशानी नहीं है |
गम इस कदर उठे  हैं दर दर से लेकिन 
किस सीरत में आज मनमानी नहीं है?
बात उतनी भी पुरानी नहीं है ||

बात किस किस की करें  हम
और किस मुद्दे पे 
कोई कहे....
 "ये मेरी कहानी नहीं है |" 
अपने नज़रों पे थोड़ा नज़र रख लें हम 
आज इतनी भी मेहरबानी नहीं है |
चलो  अब उभारों से नज़रें हटा लें 
ये सड़क हमारा खानदानी नहीं है |
बात उतनी भी पुरानी नहीं है ||

 इतना तो तय हो गया है इन दिनों में 
चीखने  चिल्लानें में 
हमारा  कोई सानी नहीं है |
पोस्टरों से इन्साफ मांगती ये आंखें 
इन मासूमियत में आज मेहमानी नहीं है |
क्या हुआ जो किसी ने लिख दिया जमीं पे 
"इस सतरंज में कोई रानी नहीं है ..."
बस कल ही तो हमने लुटा है किसी को 
बात उतनी भी पुरानी नहीं है ||

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