कुछ यादें पल दो पल की
सर्दी के रातों की तरह
खिड़कियों से छन छन कर आती हुई |
कुछ शौक से मुझमें मिलती हुई ,
कुछ शौक से मुझे मिलाती हुई
कुछ शौक से मेरे दो चार
शौक़ीन अदाओं को सिलती हुई ,
कुछ चेहरे पे केशुओं की तरह
बेपरवाह सी खिलती हुई ,
कुछ सर्द हवाओं के रुख की तरह
रास्ते बदलती हुई,
कुछ दिसम्बर के सुबह की तरह
साइकिल से दस्ताने हिलती हुई ,
कुछ गलियों के एक छोर से
बेख़ौफ़ चिल्लाती हुई ,
कुछ यादें पल दो पल की
सर्दी के रातों की तरह
खिड़कियों से छन छन कर आती हुई |
कुछ रातों को
लकड़ियों के लपटों से जलाती हुई ,
कुछ गोदी में सुला कर
सुकून और शराब पिलाती हुई ,
कुछ फूँक फूँक कर हथेलियों को
गर्म हवा से भरती हुई ,
कुछ चुप्पी को सीने में समेटे
बातें करने से डरती हुई ,
कुछ जिंदगी को हैरानी से
टुक टुक सी ताकती हुई ,
कुछ रौशनदान के सुराखों से
रौशनी की तरह झांकती हुई ,
कुछ मेरे लिखे लफ़्ज़ों को
बेपरवाह गाती हुई ,
कुछ यादें पल दो पल की
सर्दी के रातों की तरह
खिड़कियों से छन छन कर आती हुई |
awesome buddy:)
ReplyDeletejaan dal dete ho shabdo me....
ReplyDeletethanks thanks
DeleteAbsolutely loved it. Even though it's hot over here in the south, I could feel those wintry winds while reading this. One of your best poems I've read so far. Proud of you!
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