वो इकतीस दिसम्बर की रात.....
वो इकतीस दिसम्बर की रात.....
वो इकतीस दिसम्बर की रात.....
वो पहली बार गले मिलना-मिलाना
वो पहली बार मेरे गोद मेँ सोना
वो नीँद मेँ,अनजाने,तेरे धऱकन पर हाथ रखना
वो नयी रात मेँ नये रिस्ते बनाना..........याद है! §१§
महीनोँ आँख मिचौली खेलना
वो कभी-कभी आँखोँ का आँखोँ से मिल जाना
वो आँखोँ का खुद-ब-खुद बंद हो जाना...........याद है! §२§
वो फासलेँ बनाना
औ' कभी-कभी नजदीकियोँ के हदोँ को पार करना
वो क्लास मेँ कागज पे मेरे dialogues लिखना
औ' मुझे ही gift कर देना
वो copies बदलना
वो watches बदलना
वो हँसते-हँसते अचानक से मेरा रोना........याद है! §३§
वो हर रोज रास्ते मेँ मिलना
वो रात के सपनोँ को सुबह बैठ के सिलना
वो रंग लगाने के बहाने गुस्ताखियों का खिलना
वो मिट्टी से सराबोर,तुझे घर तक छोऱना
वो हर शाम बैठ के पढ़ना-पढाना
वो हर छोटे से topic के बाद toffee खाना......याद है! §४§
वो टेबल से टकरा के मेरे होठोँ पे चोट आना
वो हर शाम park मेँ चाँद का निकलना
वो गुरुद्वारे मेँ तेरे वास्ते ख्वाहिश करना....याद है!
उफ! ये तो मैँने कभी बताया ही नहीँ।
खैर क्या भूलूँ,क्या यादकरूँ मैँ
क्यूँ कर अपने ही मन से
अपने आँसू आजाद करूँ मैँ................
.............................................
फिर वही दिसम्बर,फिर वही आखिरी रात
रात छत पे आता तो
रात छत पे आता तो
करते फिर से एक शुरुआत
ओ मेरे चंदा रे
रात छत पे आता क्या?
बैठेगेँ,बातेँ करेँगेँ.
मिलकर एक गीत लिखेँगेँ.
होठोँ से प्रीत लिखेँगेँ।
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