एक शहर धुंधला धुंधला सा
मेरे अन्दर रहता है |
कुछ गलियां टेढ़ी मेढ़ी सी ,
चौराहे व्यस्त व्यस्त से ,
एक राज बनाये बैठे हैं |
आँखे उनकी ,बातें उनकी
सब याद सजाये बैठे हैं |
लफ्ज़ मेरे बिखरे बिखरे
एक आवाज बनाये बैठे हैं |
ध्वनि और प्रतिध्वनि
एक अल्फाज़ बनाये बैठे है |
छोटी छोटी बातों पे
वो मुहं लटकाए कहता है :
एक शहर धुंधला धुंधला सा
मेरे अन्दर रहता है |
कुछ सिकन समेटे चेहरे हैं
कुछ बेख़ौफ़ धड़कते मोहरे हैं
कुछ लम्हों में खोये खोये
कंधो पे मेरे सोये हैं |
कुछ गोदी में सर छुपाये
सिसक सिसक के रोये हैं |
उन आँखों की मख्मूरियत;
उन चेहरों की बेपर्द नीयत ,
सब दूर कहीं खामोसी की
मखमल मिटटी में बोये हैं |
उन बिखरे बिखरे अश्कों का
सैलाब यहीं से बहता है |
एक शहर धुंधला धुंधला सा
मेरे अन्दर रहता है |
और एक शहर है संग मेरे
जो उलटी सीधी बातें करता है |
दो टूक सी बातों से
भींगे भींगे डरता है |
घुटने टेके हाथ फैलाए
सिक्कों की ख्वाहिश करता है |
खुद पे उसे विश्वास नहीं,
अपनी कोई प्यास नहीं ,
जाने किस किस की बातों पे
घबराता है मरता है |
एक शहर है संग मेरे
जो उलटी सीधी बातें करता है |
इस शहर से दूर कहीं
मैं उस शहर में खोया रहता हूँ |
धुंधला सा है ,
पर अपना है|
दूर कहीं ,
पर दूर नहीं |
वहीँ बुनते हैं लफ्ज़ मेरे
वहीँ से आते गीत मेरे |
उन्हीं धुन्ध्लाहट में संजोये हैं
मीत मेरे और प्रीत मेरे |
और जाते जाते पलट कर वो
इतना सा कहता है:
"कुछ मासूम से वादे हैं ,
कुछ कच्चे पक्के इरादे हैं ,
है कोई कहीं खोया खोया
अश्कों की धुन्ध्लाहट में |
है कोई कहीं बेख़ौफ़ पड़ा
बस खुशियों की चाहत में |
ये जो जिंदगी है ,ये जो नब्ज हैं
सब बने बनाये लफ्ज़ हैं |
ये जो आँखे हैं सब्नम जैसी
हमने ही तो इन्हें पहचाने हैं |
ये जो चाँदनी और चाँद है
हम ही तो इनके दीवाने हैं |"
सब उस शहर की यादे हैं
धुंधले लिपटे से इरादे हैं |
जाते जाते पलट कर वो
बस इतना ही कहता है |
एक शहर धुंधला धुंधला सा
मेरे अन्दर रहता है |
Ab Lagta hai ki ek shahar aapke andar rehta hai !!
ReplyDelete