हमारे तुम्हारे बीच
कोई दीवार बनी नहीं थी |
खिड़कियां थी, शीशे की
खुलती बंद होती लापरवाह दोस्त की तरह |
फिर एक दिन अचानक
डूबती शाम के इस पार
खड़े थे हम
और उस पार तुम -
दीवार बना दी हमने |
दीवार खड़ी हो गयी,
लेकिन हम जीते रहे उसी दौर में
जब कोई दीवार थी ही नहीं -
फिर रोज़ रोज़ की बहस में
दीवार बिखड़ कर गिर गयी |
दीवार बिखड़ कर गिर गयी
लेकिन हम जीते रहे उस दौर में
जब एक दीवार खड़ी थी
हमारे तुम्हारे दरमियान |
फिर रोज़ रोज़ की ख़ामोशी
रोज़ रोज़ के सन्नाटे
रोज़ रोज़ की बहस की आग में तप रही
जमीं की मिट्टी
सुर्ख लाल हो गयी है -
ईंटें तैयार हैं
नयी दीवार उठाने को |
बनते बिगड़ते दीवारों सी
रह गयी है जिंदगी |
काश बस खिड़कियां होती, शीशे की
खुलती बंद होती लापरवाह दोस्त की तरह |
कोई दीवार बनी नहीं थी |
खिड़कियां थी, शीशे की
खुलती बंद होती लापरवाह दोस्त की तरह |
फिर एक दिन अचानक
डूबती शाम के इस पार
खड़े थे हम
और उस पार तुम -
दीवार बना दी हमने |
दीवार खड़ी हो गयी,
लेकिन हम जीते रहे उसी दौर में
जब कोई दीवार थी ही नहीं -
फिर रोज़ रोज़ की बहस में
दीवार बिखड़ कर गिर गयी |
दीवार बिखड़ कर गिर गयी
लेकिन हम जीते रहे उस दौर में
जब एक दीवार खड़ी थी
हमारे तुम्हारे दरमियान |
फिर रोज़ रोज़ की ख़ामोशी
रोज़ रोज़ के सन्नाटे
रोज़ रोज़ की बहस की आग में तप रही
जमीं की मिट्टी
सुर्ख लाल हो गयी है -
ईंटें तैयार हैं
नयी दीवार उठाने को |
बनते बिगड़ते दीवारों सी
रह गयी है जिंदगी |
काश बस खिड़कियां होती, शीशे की
खुलती बंद होती लापरवाह दोस्त की तरह |
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