परिंदों का हम सा कोई खानदान नहीं रहता
परिंदे बंटवारे पे उतर आते तो आसमान नहीं रहता ||
मैंने जिस नज़रिये से देखा था खबर
अखबार में ऐसा कोई बयान नहीं रहता ||
वो जो रहते हैं, अँधेरे में चराग की तरह
शहर में उनका देर तक निशान नहीं रहता ||
जिस अरमा से पैदा हुए, खेले कूदे बड़े हुए
उम्र आने तलक कोई अरमान नहीं रहता ||
जिससे जुबानी मिली, दिलों में उतर आये
मेरे घरौंदे में कोई मेहमान नहीं रहता ||
वो जिसकी आरजू में , तेरी आरजू है जानां
बाज़ार में ऐसा कोई सामान नहीं रहता ||
हम जब भी रोते हैं , शहर डूब जाता है
हमारे जख्मों से कोई अनजान नहीं रहता ||
परिंदे बंटवारे पे उतर आते तो आसमान नहीं रहता ||
मैंने जिस नज़रिये से देखा था खबर
अखबार में ऐसा कोई बयान नहीं रहता ||
वो जो रहते हैं, अँधेरे में चराग की तरह
शहर में उनका देर तक निशान नहीं रहता ||
जिस अरमा से पैदा हुए, खेले कूदे बड़े हुए
उम्र आने तलक कोई अरमान नहीं रहता ||
जिससे जुबानी मिली, दिलों में उतर आये
मेरे घरौंदे में कोई मेहमान नहीं रहता ||
वो जिसकी आरजू में , तेरी आरजू है जानां
बाज़ार में ऐसा कोई सामान नहीं रहता ||
हम जब भी रोते हैं , शहर डूब जाता है
हमारे जख्मों से कोई अनजान नहीं रहता ||
Awesome!! The opening line appeals directly to the conscience.
ReplyDeleteThank you Gaurav
Deleteone word....perfect
ReplyDeletefirst time read..sb upr se gya...
2nd tym...thora thora smj m aaya..
3rd tym...one of the favorite from litmus test..
Thank you Maya, :) Wo thoda kya hai jo samajh nai aaya ?
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