अच्छा लगता है ये दोनों
एक ही प्लेट में खाते हैं |
एक ही छतरी में आधे आधे
भींगते ऑफिस जाते हैं |
हाथ पकड़ कर चलते हैं
जैसे
उम्मीदों का सौदाई कैद है
हथेलियों के पिंजर में |
बेजोड़ हँसते हैं ये दोनों
शहर के सन्नाटे पे भारी है ,
टूटे कांच की माफिक इनकी हंसी |
अच्छा लगता है ये दोनों
कुछ कुछ अलग से नज़र आते हैं |
वादे दर वादे करते हैं
वादे दर वादे निभाते हैं |
तो क्या ये मुमकिन है शायद
जिस दिन वायदों का एक तागा
हलके सिकन से टूट जाएगा
दोनों अपने अपने रास्ते निकल लेंगे ;
नए इश्क़ की तलाश में ?
चलो फिरभी अच्छा ही ये दोनों
वायदों के कारिंदे हैं |
हम जैसे आवारे नहीं ||
हम कितने आवारे हैं
हर रात वादे करते हैं
हर सुबह मुकर जाते हैं |
तुम्हारे ख्वाईश की कागजी कश्ती
मुंबई के मानसून में डूब जाती है |
और तुम कितनी मासूम हो जाना
एक आस लगाये बैठी हो
कभी तो थम्हेगी ये बारिस
और स्ट्रीट के किनारे किनारे
रंगीन स्कार्फ़ का स्टाल लगेगा |
मैं लेकर आऊंगा ||
चलो अच्छा है हम दोनों
वायदों के कारिंदे नहीं ,
हमें नए इश्क़ की तलाश नहीं
इसी खोली में एक दूसरे से
लड़ते लड़ते मर जायेंगें ||
एक ही प्लेट में खाते हैं |
एक ही छतरी में आधे आधे
भींगते ऑफिस जाते हैं |
हाथ पकड़ कर चलते हैं
जैसे
उम्मीदों का सौदाई कैद है
हथेलियों के पिंजर में |
बेजोड़ हँसते हैं ये दोनों
शहर के सन्नाटे पे भारी है ,
टूटे कांच की माफिक इनकी हंसी |
अच्छा लगता है ये दोनों
कुछ कुछ अलग से नज़र आते हैं |
वादे दर वादे करते हैं
वादे दर वादे निभाते हैं |
तो क्या ये मुमकिन है शायद
जिस दिन वायदों का एक तागा
हलके सिकन से टूट जाएगा
दोनों अपने अपने रास्ते निकल लेंगे ;
नए इश्क़ की तलाश में ?
चलो फिरभी अच्छा ही ये दोनों
वायदों के कारिंदे हैं |
हम जैसे आवारे नहीं ||
हम कितने आवारे हैं
हर रात वादे करते हैं
हर सुबह मुकर जाते हैं |
तुम्हारे ख्वाईश की कागजी कश्ती
मुंबई के मानसून में डूब जाती है |
और तुम कितनी मासूम हो जाना
एक आस लगाये बैठी हो
कभी तो थम्हेगी ये बारिस
और स्ट्रीट के किनारे किनारे
रंगीन स्कार्फ़ का स्टाल लगेगा |
मैं लेकर आऊंगा ||
चलो अच्छा है हम दोनों
वायदों के कारिंदे नहीं ,
हमें नए इश्क़ की तलाश नहीं
इसी खोली में एक दूसरे से
लड़ते लड़ते मर जायेंगें ||
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