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Showing posts from January, 2015

तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है |

1. एक दिन घूमते घूमते कितनी दूर निकल गए थे हम ; कितने सारे चाँद के टुकड़े आधा - आधा कर निगल गए थे हम ; कितनी सारी दुपहरी इस डिबेट पे ख़त्म हो जाती थी : की मैं तेरे लम्हों का कातिल हूँ ,  या फिर तू मेरे लम्हों का कातिल है तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है | 2. तुम्हारे होठों से उतरते धुएं की एक तस्वीर खींच जाती है जब कोई अनजाने में कंधे पे हाथ देता है ; माचिस मांग लेता है | याद है तेरे फ्लैट के सामने जो आयरन का दरवाजा था मेरे फ्लैट के सामने भी  कुछ कुछ वैसा ही एक ग्रिल है तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है | 3. कितने सारे प्यारे वादों के लाशों पे चल कर हमने इतनी सारी दूरियां , इतने कम लम्हों में तय की है | कितनी सारी उम्मीदें मेरी तेरे दामन में जीती हैं कितनी सारी सांसें तेरी मेरी धक -धक पे चलती हैं कोई लिटमस टेस्ट तो हो : ये तेरा दिल है या मेरा दिल है | तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है |

NARRATOR'S perspective : Inter Hall Hindi Dramatics

GOLD  #HINDI DRAMATICS 2015 . Dramatics as an art ensembles a lot . You need to appoint 10 to 15 member team for just switching on lights at appropriate moment of time , a lapse of second in act may doom the whole effort . You need to appoint almost 10 to 15 people to take care of sets , and after all you need actors  or at least people who can pretend act and a director , strict yet comprehensive . You need literature in dialogue , class in walk , and far from the least empathy in act . Still its not a drama , until you put all above mentioned stuffs in a structured  box and run with this box for next 50 minutes without disturbing the structure .  Thank you RK . It was a magnum opus and a signature evening with love ,laughs and an outcry " HUM FIR AAYENGE " .  Just sharing , on request the concluding narration . आज की शाम हमारा सफर यहीं समाप्त होता है  इस उम्मीद से की :  जिस सुबह की खातिर सदियों से मर मर कर जीते आये हैं ...

COME BACK BLOG :इंटरप्रीटेशन ( INTERPRETATION )

कभी कभी यूँ भी लगता है सारे ख्वाब तो लिख दिए गए हैं कहीं न कहीं | जज्बातों के तमाम किस्से दर्ज हैं कहीं न कहीं | वो सारे देशी शोर शराबे और उनसे टूटने वाली शहरी नींदें ; हलके से बहस पे शीशों की माफिक बिखरते रिश्ते दूधिये चाँद के मत्थे पे स्याह रात की दो चार बिंदी कब कुछ तो बयां है कहीं का कहीं | रह क्या गए हैं ? कुछ जर्द सादे कागजों के अपने अपने  इंटरप्रीटेशन अब बचा क्या है लिखने को ? बस इतना की : चाय फीकी पड़ गयी है कॉफ़ी में अरोमा रही नहीं आजकल इस बेदर्दी सर्दी को धूप का सहारा मिलता नहीं ||

#Katiyabazz

The award winning documentary movie #Katiyabazz tests audience's patience and forwards a fresher way to treat cinema with realism and rawness .Straight from the heartland of kanpur it encompasses  documentation of electricity deficit kanpur along with the social conflict between politics and honest bureaucracy.It  raises the age old question of people and system's cross cutting blame on each other . An IAS officer strict with its strategies attempts to collect all the electricity bills pending and stop the running Bijli Chori , hence turns out to be the villain of masses . #Kanpoora song by Rahul ram is a musical derailment to showcase decline of kanpoor . उधरी रियासत लुटे सुल्तान अधमरी बुलबुल आधी जान आधी सदी के आधी नदी के आधे सड़क पे पूरी जान आधा आधा जोड़ के बनता पूरा एक फितूरा और आधे बुझे  चिराग  के नीचे पूरा कानपुरा #Kanpoora song

December Diary

  दो चार डेट्स को मार्क करके नन्हें लफ़्ज़ों में कुछ लिखा गया है   कुछ चुराए हुए लम्हें टंगे है | किनारे की खाली जगह पे  नीले इंक के दो एक फ़ोन नंबर्स हैं  जिनसे कॉल आना अभी बांकी है | अखबार वाले का हिसाब भी तो है क्रॉस लगा है  उन सारे डब्बों में  जिस दिन मेरी गली आया नहीं वो l  कुछ नए रिश्तों के यादों के साये  कुछ पुराने रिश्तों के कच्चे दर्द टंगे हैं |  वक़्त आ गया है लेकिन  इस कैलेंडर को उतारूँ कैसे ?